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सर्वोच्च न्यायालय-2020 में सुप्रीम कोर्ट के 20 फैसले, जिसका सीधा आपसे है सरोकार।

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2020 में सुप्रीम कोर्ट के 20 फैसले, जिसका सीधा आपसे है सरोकार

Biggest Supreme Court Decisions 2020

सुप्रीम कोर्ट ने 2020 में कोरोना काल के दौर में कई ऐसे फैसले दिए जिसका सीधा असर आम लोगों से जुड़ा। अब जब 2020 जा रहा है तो आइए जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के वे 20 अहम फैसले जिसका असर हम सबपर पड़ा।

सुप्रीम कोर्ट ने 2020 में कई अहम फैसले सुनाए
कोरोना काल में विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए शीर्ष अदालत ने महिलाओं को लेकर कई अहम फैसले दिए
उच्चतम न्यायायल ने मौलिक अधिकारों पर कई अहम टिप्पणी की।
2020 में सुप्रीम कोर्ट ने विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये सुनवाई के दौरान कई महत्वपूर्ण फैसले दिए जिनका भारतीय राजनीतिक, सामाजिक और पारिवारिक मामलों में दूरगामी असर होगा। साथ ही भारतीय संविधान में मिले मौलिक अधिकारों के बारे में सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले दिए। 2020 के इन फैसलों में हम 20 फैसलों का जिक्र कर रहे हैं जिनका सीधा आम लोगों से सरोकार है और ये फैसले बेहद चर्चित भी रहे। राजेश चौधरी की रिपोर्ट।

मौलिक अधिकार को लेकर अहम फैसले जिनसे लोगों का है सीधा सरोकार

-जम्मू कश्मीर में इंटरनेट बैन पर समीक्षा करे सरकार

सुप्रीम कोर्ट ने 10 जनवरी 2020 को दिए फैसले में कहा था कि इंटरनेट सर्विस को अनंतकाल के लिए सस्पेंड नहीं किया जा सकता। साथ ही कहा कि धारा-144 का इस्तेमाल तभी हो सकता है जब खतरे का अंदेशा हो। धारा-144 का इस्तेमाल इसलिए नहीं हो सकता कि किसी वैध अभिव्यक्ति या लोकतांत्रिक अधिकार को दबाया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू कश्मीर में धारा-144 के तहत रिस्ट्रिक्शन और इंटरनेट पर बैन के खिलाफ दाखिल पर उक्त आदेश पारित किया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इंटरनेट के जरिये विचार अभिव्यक्ति का अधिकार संवैधानिक अधिकार है। इसमें संविधान के तहत ही रिस्ट्रिक्शन हो सकता है और उसके लिए अनुपातिक टेस्ट जरूरी है। इंटरनेट के जरिये विचार अभिव्यक्ति का अधिकार और व्यापार व व्यवसाय का अधिकार संवैधानिक तौर पर संरक्षित है और इस पर संवैधानिक प्रावधानों के तहत ही रिस्ट्रिक्शन लगाया जा सकता है।

-धरना प्रदर्शन का है अधिकार लेकिन सड़क पर दूसरों को चलने का है अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने 7 अक्टूबर को अपने अहम फैसले में कहा कि शांतिपूर्ण धरना प्रदर्शन का अधिकार संवैधानिक अधिकार है लेकिन इसके तहत हमारी ड्यूटी भी तय की गई है। प्रदर्शन के नाम पर पब्लिक रोड पर कब्जा कर दूसरे के लिए असुविधाएं पैदा नहीं की जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय किशन कौल की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि हमारा मत है कि इस तरह से पब्लिक रोड को कब्जा कर प्रदर्शन को स्वीकार नहीं किया जा सकता है और प्रशासन की ड्यूटी है कि वह ऐसी जगह को खाली कराए। इस तरह से प्रदर्शन के लिए पब्लिक रोड को कब्जा करने के मामले में प्रशासन एक्शन ले और कोर्ट का इंतजार न करे। धरना प्रदर्शन का अधिकार और सड़क पर चलने वालों के अधिकार में संतुलन कायम रखना होगा।

-किसानों का प्रदर्शन करना उनका मौलिक अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि प्रदर्शन करना मौलिक अधिकार है। 17 दिसंबर को किसानों के प्रदर्शन मामले में दिए अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि प्रदर्शन का अधिकार मौलिक अधिकार का पार्ट है और प्रदर्शन पब्लिक ऑर्डर के दायरे में हो सकता है। हमारा मत है कि किसानों का इस स्टेज पर प्रदर्शन की इजाजत होनी चाहिए और उसमें अवरोध पैदा नहीं किया जा सकता जब तक कि प्रदर्शनकारी शांति भंग नहीं करते। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रदर्शन करने के अधिकार में कोई अवरोध तब तक नहीं हो सकता जब तक वह अहिंसक आंदोलन हो।

-लोगों की लिबर्टी सर्वोपरि
27 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि क्रिमिनल केस में निष्पक्ष जांच जरूरी है लेकिन अदालतों को सुनिश्चित करना होगा कि किसी नागरिक को प्रताड़ित करने के लिए क्रिमिनल लॉ का इस्तेमाल हथियार के तौर पर न हो। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि मानवीय लिबर्टी बहुमूल्य संंवैधानिक अधिकार है। हाई कोर्ट को असीम अधिकार मिले हुए हैं ताकि लोगों के संवैधानिक मूल्यों और स्वच्छंदता (लिबर्टी) संरक्षित रहे। मानवीय लिबर्टी महत्वपूर्ण और बहुमूल्य अधिकार है। इसमें संदेह नहीं है कि ये कानून के दायरे में है। आजादी के बाद संसद ने हाई कोर्ट के असीम अधिकार को मान्यता दे रखी है ताकि लोगों के संवैधानिक मूल्य और लिबर्टी संरक्षित रहे। संवैधानिक तानेबाने के जरिये लिबर्टी का रिट मिला हुआ है।

फैसले के असर: इन फैसलों से आम लोगों को उनके मौलिक अधिकार के बार में बताया गया है जो संसदीय लोकतंत्र में अहम है

महिलाओं को मिले सुप्रीम कोर्ट से तमाम अधिकार..

-महिलाओं को परमानेंट कमिशन

17 फरवरी को दिए महत्वपूर्ण फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने आर्म्ड फोर्स में महिलाओं के साथ भेदभाव को खत्म कर दिया। और कहा है कि सभी महिला ऑफिसरों को परमानेंट कमिशन मिलेगा और उनके लिए कमांड पोजिशन का रास्ता भी साफ कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने केंद्र सरकार से कहा था कि वह महिला ऑफिसरों को तीन महीने के भीतर परमानेंट कमिशन प्रदान करें। जस्टिस चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा कि महिलाओं ने अतीत में तमाम बहादुरी के कारनामे किए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने लिंग समानता के मामले में मील का पत्थर साबित करने वाले फैसले में कहा है कि सरकार को मामले में अपनी विचारधारा और माइंडसेट बदलने की जरूरत है।

-बेटे के बराबर बेटी को अधिकार

11 अगस्त को दिए सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में कहा है कि बेटी को अपने पैतृक संपत्ति में बेटे के बराबर का अधिकार है और हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम 2005 के वक्त चाहे बेटी के पिता जिंदा रहे हों या नहीं बेटी को हिंदू अनडिवाइडेड फैमिली (एचयूएफ) में बेटे के बराबर संपत्ति में अधिकार मिलेगा। बेटी को पैदा होते ही जीवनभर बेटे के बराबर का अधिकार मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि हिंदू उत्तराधिकार संशोधन अधिनियम 2005 की धारा-6 के तहत प्रावधान है कि बेटी पैदा होते ही कोपार्सनर (हम वारिस या सहदायिकी) हो जाती है। हिंदू उत्तराधिकार संशोधन अधिनियम 2005 के बाद बेटी पैदा हुई हो या पहले पैदा हुई हो उसका बेटे के बराबर हिंदू अनडिवाइडेड फैमिली (एचयूएफ) के संपत्ति में अधिकार होगा।

-बहू को ससुराल में रहने का अधिकार
15 अक्टूबर 2020 को दिए अहम फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संपत्ति मालिक अगर डोमेस्टिक रिलेशनशिप में हो तो बहू को संपत्ति में रहने का अधिकार है। यानी सास-ससुर अगर डोमेस्टिक रिलेशनशिप में हैं तो बहू शेयर्ड हाउस होल्ड प्रॉपर्टी में रह सकती है। सुप्रीम कोर्ट के एक अहम फैसले में बहू को ससुराल में रहने का अधिकार दिया गया। दरअसल डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट के तहत दिए गए प्रावधान की सुप्रीम कोर्ट ने व्याख्या की है और कहा कि डोमेस्टिक रिलेशन में बहू अगर रह चुकी है या रह रही है तो उसे डीवी एक्ट के तहत वहां रहने का अधिकार है।

फैसले का असर: इन फैसलों से महिलाओं को फ्रंट से लकर अपन मायके और ससुराल में सबल किया गया है।

आपराधिक मामलों में कई अहम फैसले जिनकी देश में खासी रही चर्चा..

-निर्भया के दोषियों की अर्जी खारिज..फांसी पर लटकाया गया
फांसी से बचने के लिए आखिरी वक्त तक निर्भया के गुनाहगारों ने प्रयास किया। सुप्रीम कोर्ट ने गुनाहगार पवन की याचिका 20 मार्च कोतड़के साढ़े तीन बजे खारिज की और सुबह साढ़े पांच बजे चारों मुजरिमों को फांसी के तख्त पर चढ़ा दिया गया। मुजरिमों ने गुरुवार को लगातार पटियाला हाउस कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक अलग-अलग अर्जियां दाखिल की और एक-एक कर तमाम अर्जियां खारिज होती गई। देखा जाए तो आखिरी सांस तक निर्भया के गुनाहगारों ने तमाम तिकड़म और कानूनी दांव पेंच का सहारा लिया लेकिन फिर भी वह अपने आखिरी अंजाम तक पहुंच गए।

-सुशांत केस में सीबीआई जांच पर मुहर
सुशांत सिंह राजपूत केस में सुप्रीम कोर्ट ने 19 अगस्त को अपना फैसला दिया कि मामले ेमें सीबीआई जांच हो और कहा है कि महाराष्ट्र सरकार सीबीआी को सहयोग करे। महाराष्ट्र सरकार तमाम जांच संबंधित दस्तावेज में मदद करे। सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई से कहा है कि वह भविष्य में सुशांत केस से संबंधित मामले को अपने हाथों में ले। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीबीआई न सिर्फ पटना के एफआईआर मामले की जांच के लिए सक्षम है बल्कि आगे भी कोई केस दर्ज होता है इस मामले में तो वह सीबीआई देखेगी।

-डीम्ड यूनिवर्सिटी पीसी एक्ट के दायरे में
सुप्रीम कोर्ट ने 28 अप्रैल 2020 को दिए फैसले में कहा है कि डीम्ड यूनिवर्सिटी पीसी एक्ट (भ्रष्टाचार निरोधक कानून) के दायरे में आएगा। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दिए गए अहम फैसले में कहा है कि डीम्ड यूनिवर्सिटी एक्ट के तहत पब्लिक अथॉरिटी में आता है और इस तरह से वह पीसी एक्ट के दायरे में है। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाई कोर्ट के फैसले को उलट दिया। हाई कोर्ट ने कहा था कि डीम्ड यूनिवर्सिटी के ट्रस्टी पर पीसी एक्ट के तहत केस नहीं चल सकता

फैसले का असर: क्रिमिनल केसों में सुप्रीम कोर्ट ने इन तीनों मामलों में अहम संदेश दिए है।

विडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुनवाई से लेकर थाने में सीसीटीवी लगाने का अहम आदेश..

-कोरोना काल में विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये सुनवाई का आदेश
6 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना वायरस महामारी को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि देश भर की अदालतों में विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये सुनवाई किया जाए। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने देश भर के हाई कोर्ट से कहा है कि वह इसके लिए उपाय करें ताकि विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये सुनवाई सुनिश्चित हो सके। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कोरोना के कारण कोर्ट में भीड से बचना होगा ताकि महामारी न फैले।

-देश भर के थानों में सीसीटीवी लगाए जाएं
2 दिसंबर 2020 देश भर के थानों में सीसीटीवी लगाने का सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट ने देश भर के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया है कि सही भावना से कोर्ट के आदेश को लागू कराया जाए। थाने का एसएचओ तमाम डाटा और सीसीटीवी के रखरखाव के लिए जिम्मेदार होगा और एसएचओ इस बात को सुनिश्चित करेगा कि सीसीटीवी वर्किंग कंडिशन में रहे। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह सीबीआई, ईडी, एनआईए, एनसीबी, डीआरआई, सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन आदि के दफ्तर में भी सीसीटीवी लगाए जाएं।

-ड्रग्स केस में पुलिस के सामने दिया इकबालिया बयान साक्ष्य के तौर पर मान्य नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने 29 अक्टूबर को अपने एक बेहद महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि एनडीपीएस (मादक पदार्थ निरोधक कानून) के तहत उनके अधिकारी के सामने दर्ज इकबालिया बयान साक्ष्य के तौर पर ट्रायल में इस्तेमाल नहीं होगा। यानी एनडीपीएस एक्ट के तहत पुलिस के सामने दिए गए इकबालिया बयान साक्ष्य के तौर पर मान्य नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस रोहिंटन नरीमन और जस्टिस नवीन सिन्हा ने बहुमत से दिए फैसले में कहा कि इस तरह का बयान एविडेंस एक्ट की धारा-25 के विपरीत है और पुलिस ऑफिसर के सामने दिया ये बयान मान्य साक्ष्य के तौर पर इस्तेमाल नहीं हो सकता है।

-प्रशांत भूषण अवमनना में दोषी करार
14 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने जानेमाने एडवोकेट प्रशांत भूषण को कंटेप्ट ऑफ कोर्ट में दोषी करार दिया है। भूषण ने दो टि्वट में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। वहीं 31 अगस्त को भूषण को कंटेप्ट ऑफ कोर्ट मामले में सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण पर एक रुपये का जुर्माना लगाया और कहा है कि अगर वह जुर्माने की रकम जमा नहीं करते तो उन्हें तीन महीने की जेल होगी और प्रैक्टिस पर तीन साल के लिए बैन लग जाएगा।

फैसले का असर: सीसीटीवी थाने में लगाने से निश्चित तौर पर पारदर्शिता होगी। वहीं कंटेप्ट में प्रशांत को दोषी करार देकर अदालत ने संदेश दिया है कि अदालत की गरिमा के साथ समझौता नहीं होगा।

वो फैसला जिनका राजनीतिक हलकों में असर..

-गवर्नर दे सकता है फ्लोर टेस्ट का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने 18 अप्रैल 2020 को कहा है कि मध्यप्रदेश के गवर्नर लालजी टंडन ने तत्कालीन कमलनाथ सरकार को जो बहुमत साबित करने का आदेश दिया था वह सही था। सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल लालजी टंडन के उस आदेश को सही ठहराते हुए बरकरार रखा जिसमें राज्यपाल ने फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया था। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में राज्यपाल के आदेश को चुनौती दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने 1994 के ऐतिहासिक एसआर बोमई जजमेंट का हवाला दिया और कहा कि गवर्नर का अधिकार है कि वह फ्लोर टेस्ट के लिए सरकार को कहे। अगर गवर्नर को पहली नजर में लगता है कि सरकार अल्पमत में आ गई है तो राज्यपाल उन्हें फ्लोर टेस्ट के लिए कह सकते हैं और इसमें कोई बाधा नहीं है।

-रिजर्वेशन मौलिक अधिकार नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने 11 जून को कहा कि आरक्षण का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है। वहीं 7 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाई कोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया जिसमें हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से कहा था कि वह प्रोमोशन में आरक्षण देने के लिए क्वांटिटेटिव डाटा एकत्र करे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार को रिजर्वेशन देने के लिए निर्देश जारी नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने अपने अहम फैसले में कहा है कि राज्य सरकार प्रोमोशन में आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं है। सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि राज्य सरकार प्रोमोशन में आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं है। किसी का मौलिक अधिकार नहीं है कि वह प्रोमोशन में आरक्षण का दावा करे।

फैसले का असर: फ्लोर टेस्ट को लेकर दिया गया फैसला आने वाले दिनों में दूरगामी असर होगा।

कोरोना काल में कई अहम फैसले जिनका लोगों से है सीधा सरोकार..

-कोरोना टेस्ट फ्री में करने का आदेश
13 अप्रैल 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आर्थिक तौर पर कमजोर और आयुष्मान भारत योजना के तहत आने वले लोगों का फ्री में कोरोना टेस्ट होगा। अपने उस आदेश में बदलाव किया है जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने प्राइवेट लैब में कोरोना टेस्ट फ्री करने का आदेश दिया था। बाकी लोगों को प्राइवेट लैब में टेस्ट के लिए सरकार द्वारा निर्धारित कीमत देनी होगी।

-प्रवासियों को अपने घर जाने दिया जाए
18 अप्रैल 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोरोना टेस्ट के बाद प्रवासी मजदूरों को अपने घर वापस भेजने का इंतजाम किया जाए। प्रवासी मजदूर जो अलग-अलग राज्यों में फंसे हुए हैं उनका कोरोना टेस्ट कराने के बाद उन्हें उनके पैतृक घर भेजने का इंतजाम करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की गई थी। उनके जीवन के अधिकार का मामला है। अनुच्छेद-21 में जीवन का अधिकार मिला हुआ है लेकिन लॉकडाउन के कारण उनके जीवन के अधिकार और समानता के अधिकार प्रभावित हुए हैं।

-15 दिनों में मजदूरों को घर वापस भेजा जाए
19 जून 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने प्रवासी मजदूरों को उनके पैतृक घर भेजने के मामले में सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया है कि उनका जो आदेश था उसके तहरत तमाम प्रवासी मजदूरों को आदेश के 15 दिनों के भीतर उनके पैतृक घर भेजना अनिवार्य है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में सभी मजदूरों को उनके घर15 दिनों में भेजने का निर्देश दिया था और साथ ही कहा था कि उनसे किराया न लिया जाए और खाने का इंतजाम किया जाए।सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि तमाम प्रवासी मजदूरों को आदेश के 15 दिनों के भीतर उनके पैतृक गांव भेजे जाने का निर्देश है।

-राइट टु हेल्थ मौलिक अधिकार
18 दिसंबर को दिए अपने महत्वपूर्ण आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राइट टु हेल्थ मौलिक अधिकार है और संविधान के अनुच्छेद-21 इसकी गारंटी करता है। सरकार की जिम्मेदारी है कि वह लोगों के सस्ते इलाज की व्यवस्था करे। अपने अहम फैसले में कहा है कि राइट टु हेल्थ मौलिक अधिकार है और संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत जो जीवन का अधिकार है उसी में राइट टु हेल्थ शामिल है। इसके तहत सस्ते इलाज की व्यस्था होनी चाहिए। राइट टु हेल्थ में इलाज आम लोगों के जेब के दायरे में होना चाहिए। ऐसे में सरकार की जिम्मेदारी है कि वह आम लोगों के लिए सस्ते इलाज की व्यवस्था करे। राज्य की ये भी जिम्मेदारी है कि सरकार और स्थानीय एडमिनिस्ट्रेशन द्वारा चलाए जाने वाले अस्पतालों की संख्या ज्यादा से ज्यादा बनाई जाए और इसकी व्यवस्था की जाए।

फैसले का असर: कोरोना काल में सुप्रीम कोर्ट के तमाम फैसले लोगों के लिए लाभकारी साबित होगा। कोरोना टेस्ट फ्री करने, हेल्थ का अधिकार मौलिक अधिकार बताने और मजदूरों को घर भेजने का जो आदेश था वह देश की गरीब जनता के लिए अहम साबित होगा।

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