[ झीरम घाटी नक्सली हमला छत्तीसगढ] सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार की न्यायिक आयोग को अतिरिक्त गवाहों की जांच के आदेश की अर्जी खारिज की
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[ झीरम घाटी नक्सली हमला छत्तीसगढ] सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार की न्यायिक आयोग को अतिरिक्त गवाहों की जांच के आदेश की अर्जी खारिज की
झीरम घाटी नक्सली हमला मामले में SC ने भूपेश सरकार की याचिका खारिज की, जानिए क्या थी मांग?
25 मई 2013 को बस्तर की झीरम घाटी में कांग्रेस की बस पर हुए नक्सली हमले में कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं सहित 29 लोगों की मौत हो गई थी
दिल्ली सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार की 2013 में हुए बस्तर नक्सली हमले में अधिक गवाहों की सुनवाई की याचिका खारिज कर दी है. 25 मई 2013 को राज्य के बस्तर की झीरम घाटी में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा काफिले पर हुए हमले में कई कांग्रेस नेताओं सहित 29 लोगों की मौत हो गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने भूपेश सरकार की उस अर्जी को खारिज कर दिया है, जिसमें 6 नए गवाहों के बयान दर्ज करने हेतु न्यायिक जांच की मांग की थी.
हाईकोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट की भी ना
सुप्रीम कोर्ट में छत्तीसगढ़ सरकार की याचिका के जवाब में कहा गया कि मामले की अधिकारिक जांच समाप्त हो गई है. आयोग ने साथ ही कहा कि गवाहों को खुद आवेदन करना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. कांग्रेस ने हमले की जांच से असंतुष्ट होकर हाई कोर्ट में 6 नए गवाहों की सुनवाई के लिए याचिका दायर की थी, जिसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका दायर की. लेकिन दोनों ही अदालतों में उन्हें सफलता नहीं मिली.
25 मई को झीरम श्रद्धांजली दिवस
25 मई 2013 को छत्तीसगढ़ के बस्तर में नक्सलियों द्वारा हमले में कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल और सुरक्षाबलों सहित 29 लोगों की मौत हो गई थी. जिसके बाद तत्कालीन रमन सरकार ने इस मामले में जांच करवाई थी. लेकिन कांग्रेस नें इस हमले को सुपारी किलिंग करार देते हुए सरकार बदलते ही दोबारा जांच करवाई. जिसके बाद भूपेश बघेल ने राज्य में शांति स्थापित करने की शपथ लेते हुए 25 मई को श्रद्धांजली दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की.
राज्य में भाजपा सरकार ने न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की अध्यक्षता में एक विशेष न्यायिक जांच आयोग का गठन किया और उसे तीन महीने में एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया, जिन परिस्थितियों के कारण हमला और अन्य संबंधित मामले सामने आए। आयोग का कार्यकाल सरकार द्वारा समय-समय पर बढ़ाया गया था। अधिवक्ता सुमेर सोढ़ी द्वारा दायर अपील में कहा गया है कि 29 जनवरी को बिलासपुर में उच्च न्यायालय की पीठ ने 12 दिसंबर, 2019 को पारित एकल न्यायाधीश के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था, जिन्होंने अतिरिक्त गवाहों की जांच के लिए याचिका खारिज कर दी थी। यह प्रस्तुत किया गया था कि 11 अक्टूबर, 2019 को आयोग ने अधिक गवाहों की जांच करने के लिए राज्य की प्रार्थना को अस्वीकार कर दिया था और उक्त गवाहों की जांच किए बिना जांच कार्यवाही को बंद कर दिया था, जो उस उद्देश्य के लिए प्रासंगिक थे, जिसके लिए आयोग गठित किया गया था।
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