नमस्कार 🙏 हमारे न्यूज पोर्टल - मे आपका स्वागत हैं ,यहाँ आपको हमेशा ताजा खबरों से रूबरू कराया जाएगा , खबर और विज्ञापन के लिए संपर्क करे +91 97541 60816 ,हमारे यूट्यूब चैनल को सबस्क्राइब करें, साथ मे हमारे फेसबुक को लाइक जरूर करें , छत्तीसगढ़ बस्तर दशहरा- रावण दहन ना करके 75 दिनों पूर्व से ही रथ बनाने एवं उससे जुड़ी परंपराओं का निर्वहन किया जाता है। अनोखी रस्में बस्तर दशहरा को बेहद ही अनूठा बनाती है। – पर्दाफाश

पर्दाफाश

Latest Online Breaking News

छत्तीसगढ़ बस्तर दशहरा- रावण दहन ना करके 75 दिनों पूर्व से ही रथ बनाने एवं उससे जुड़ी परंपराओं का निर्वहन किया जाता है। अनोखी रस्में बस्तर दशहरा को बेहद ही अनूठा बनाती है।

😊 कृपया इस न्यूज को शेयर करें😊

बस्तर दशहरा का आकर्षण – विशाल काष्ठ रथ एवम् फुल रथ परिक्रमा

पर्दाफाश डेस्क-

बस्तर की आदिम संस्कृति एवं अनोखी रस्में बस्तर दशहरा को बेहद ही अनूठा बनाती है। एक ओर दशहरा पर्व अच्छाई कीे बुराई पर विजय के प्रतीक के तौर पर मनाया जाता है। रावण के पुतले दहन किये जाते है वहीं बस्तर में पुतले दहन ना करके दशहरा में काष्ठ रथों को खींचने की अनोखी परंपरा है। यहां रावण दहन ना करके 75 दिनों पूर्व से ही रथ बनाने एवं उससे जुड़ी परंपराओं का निर्वहन किया जाता है जिसके कारण इसे विश्व का सबसे लंबा दशहरा का भी गौरव प्राप्त है। बस्तर दशहरा में सबसे मुख्य आकर्षण का केन्द्र दुमंजिला भवन का भव्य काष्ठ रथ होते है।

हर साल नये सिरे से बनाए जाने वाले इस रथ को बनाने वाले कारीगरों के पास भले ही किसी इंजीनियरिंग कालेज की डिग्री न हो, लेकिन जिस कुशलता और टाइम मैनेजमेंट से इसे तैयार किया जाता है, वह आश्चर्य का विषय साबित हो सकता है।

रथ के चक्कों से लेकर धुरी (एक्सल)तथा रथ के चक्कों व मूल ढांचे के निर्माण में ग्रामीण अपने सीमित घरेलू औजार कुल्हाड़ी व बसूले, खोर खुदनी सहित बारसी का ही उपयोग करते हैं। काष्ठ रथ बनाने से जुड़ी रस्में पाटजात्रा, नारफोड़नी, बारसी उतारनी और फिरतीफारा रस्मों का श्रद्धा के साथ निर्वहन किया जाता है।

इन रस्मों के साथ रथ बनाने के लिये प्रयुक्त औजारों की पूजा अर्चना के साथ किसी भी तरह की अनहोनी ना घटित हो इसलिये देवी की पूजा अर्चना की जाती है। 1408 में बस्तर महाराज पुरूषोत्तम देव ओडिसा के पुरी मंदिर से रथपति का सम्मान प्राप्त किये थे। इसलिये विगत छः सौ वर्षो से बस्तर दशहरा में रावण ना मारकर रथ खींचने का प्रथा चल पड़ी है।

जोगी बिठाई के दुसरे दिन अर्थात आश्विन शुक्ल द्वितीया से सप्तमी तक रथ चलाया जाता है। दशहरा के लिये दो रथ बनाये जाते है। पहला चार चक्कों वाला फूलरथ और दुसरा आठ चक्को वाला रैनी रथ। महाराज पुरूषोत्तम देव के समय 12 पहिये वाला रथ चलाया जाता था। किन्तु रथ चालन में कठिनाईयों के कारण आठ चक्कों एवं चार चक्कों के दो रथ चलाये जाने लगे। आष्विन शुक्ल द्वितीया से सप्तमी तक चार पहियों वाला फूलरथ चलाया जाता है।

रथ निर्धारित मार्गाें में ही चलाया जाता है। मां दंतेश्वरी के छत्र को फूलरथ में विराजित कर मावली मंदिर की परिक्रमा कराई जाती है। सबसे पहले मांई जी के छत्र को दंतेश्वरी मंदिर से मावली माता मंदिर राम मंदिर लाया जाता है। तत्पश्चात भगवान जगन्नाथ मंदिर के सामने खड़े रथ में माई जी के छत्र को विराजित किया जाता है। इस मौके पर जिला पुलिस बल के जवानों ने हर्ष फायर कर माता को सलामी देते है। । रथ चालन के इस कार्यक्रम को देखने के लिये जगदलपुर में लोगों को हुजूम उमड़ता है।

लाला जगदलपुरी जी अपनी पुस्तक बस्तर इतिहास और संस्कृति में लिखते हैं कि रथ पर राजा देवी का छत्र लेकर आसीन होता है। इस रथ को फूलों से सजाया जाता है जिसके कारण इसे फूल रथ कहते है। राजा स्वयं फूलों से बनी पगड़ी पहनता था। फूल रथ को कचोरापाटी और अगरवारा परगनों के लोग ही खींचते है। रथ पर चढ़ने के लिये सीढ़ी गढे़या के ग्रामीण बनाते हैं। रथ खींचने की रस्सियां करंजी केसर पाल और सोनाबाल के ग्रामीण बनाते है। रियासत काल में केंवटा जात नाईक और पनारा जात नाईक की पत्नियां पहले फूल रथ पर परिक्रमा के लिये रवाना होने से पहले चना लाई और रोटियां छिड़कती थी।

रथ खींचने का कार्य सिर्फ किलेपाल के माड़िया जनजाति के युवक ही करते है। इनके द्वारा रथ चुराकर कुम्हड़ाकोट ले जाया जाता है। जहां राजपरिवार द्वारा नवाखानी एवं अन्य रस्में पुरी की जाती है।

साभार

बस्तर भूषण

छायाचित्र सौजन्य रजत जैन

Whatsapp बटन दबा कर इस न्यूज को शेयर जरूर करें 

Advertising Space


स्वतंत्र और सच्ची पत्रकारिता के लिए ज़रूरी है कि वो कॉरपोरेट और राजनैतिक नियंत्रण से मुक्त हो। ऐसा तभी संभव है जब जनता आगे आए और सहयोग करे.

Donate Now

लाइव कैलेंडर

October 2024
M T W T F S S
 123456
78910111213
14151617181920
21222324252627
28293031  

You May Have Missed