जरूरत है बस आत्मविश्वास की मौका तो दें महिलाओं को।

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जरूरत है बस आत्मविश्वास की मौका तो दें महिलाओं को।🟥
*✍️आरती वैष्णव-एडिटर-
विचार महिलाओ के अधिकार पद प्रतिष्ठा, औपचारिकता,और सम्मान पर -🎯*
हमारे समाज व देश मे महिला शक्ति की हर क्षेत्र में सहभागिता देश व समाज को नई दिशा व प्रगति प्रदान करेगी समाज को बुलन्दियों तक पहुचायेगी एक महिला की दृढ़ इच्छाशक्ति।बशर्ते उनके पद को औपचारिक न रखें,महिलाएं पद में रहती है लेकिन उनके घर परिवार के लोग पुरुषवर्ग उनके कर्तव्यों का निर्वहन करते है,सारी जिम्मेदारियां स्वयं देखते है महिला जनप्रतिनिधि से केवल दस्तखत करवाते है वही हमारे समाज मे मुझे दिव्यांगता दिखने लगती है ।
आखिर एक महिला को क्यो कठपुतली की तरह समझा जाता है।पढ़ी लिखी समझदार काबिल होकर भी उन्हें केवल शो पीस की तरह ट्रीट किया जाता है,उनसे निर्णायक शक्ति छीन लिया जाता है,प्रतिनिधि चूने जाने के बाद भी उनके स्थान पर उनके पति या अन्य रिस्तेदार कब्जा जमाकर बेठ जाते है वही एक महिला के सम्मान को पद प्रतिष्ठा को ठेस लगता है और वो दुनिया की नजरों में केवल औपचारिक नाममात्र की बनकर रह जाती है।
मैं हमेशा ही उनका विरोध करती हूं जो अपनी पत्नी व अपने घर की महिला के पद पर इठलाते है,उनको शून्य करके खुद रौब दिखाते है और फिर खुद उन्हें नीचा दिखाते है।महिलाओ को आगे आने दीजिये उन्हें भले ही अपने अनुभव घर पर बताएं पर कभी भी उनका स्थान,उनका सम्मान,उनके अधिकार, औऱ उनकी निर्णायक शक्ति को न छीने।
हमारे समाज व देश मे महिला शक्ति की हर क्षेत्र में सहभागिता देश व समाज को नई दिशा व प्रगति प्रदान करेगी समाज को बुलन्दियों तक पहुचायेगी एक महिला की दृढ़ इच्छाशक्ति।बशर्ते उनके पद को औपचारिक न रखें।महिलाएं पद में रहती है लेकिन उनके घर परिवार के लोग पुरुषवर्ग उनके कर्तव्यों का निर्वहन करते है,सारी जिम्मेदारियां स्वयं देखते है महिला जनप्रतिनिधि से केवल दस्तखत करवाते है वही हमारे समाज मे मुझे दिव्यांगता दिखने लगती है।जिसे हमें स्वीकार करनी ही होगी।
आखिर एक औरत को क्यो कठपुतली की तरह समझा जाता है।पढ़ी लिखी समझदार काबिल होकर भी उन्हें केवल शो पीस की तरह ट्रीट किया जाता है,उनसे निर्णायक शक्ति छीन लिया जाता है,प्रतिनिधि चूने जाने के बाद भी उनके स्थान पर उनके पति या अन्य रिस्तेदार कब्जा जमाकर बेठ जाते है वही एक महिला के सम्मान को पद प्रतिष्ठा को ठेस लगता है और वो दुनिया की नजरों में केवल औपचारिक नाममात्र की बनकर रह जाती है।
मैं हमेशा ही उनका विरोध करती हूं जो अपनी पत्नी व अपने घर की महिला के पद पर इठलाते है,उनको शून्य करके खुद रौब दिखाते है और फिर खुद उन्हें नीचा दिखाते है।महिलाओ को आगे आने दीजिये उन्हें भले ही अपने अनुभव घर पर बताएं पर कभी भी उनका स्थान,उनका सम्मान,उनके अधिकार, औऱ उनकी निर्णायक शक्ति को न छीने।
*महिलाओ पर भरोसा करना सीखें क्योकि हम महिलाएं भी किसी से कम नही बस हमे मौका मिले अपने समाज, गाँव, नगर राज्य ,देश और दुनिया के लिए कुछ करने की।*

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