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मोटर वाहन दुर्घटना में क्लेम करने की प्रोसेस, ट्रिब्यून और अपील के बारे में विस्तृत जानकारी

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 मोटर वाहन दुर्घटना में क्लेम करने की प्रोसेस, ट्रिब्यून और अपील के बारे में विस्तृत जानकारी

 21 वी सदी में जब टेक्नोलॉजी अपने उन्नति के नए आयाम पर है तो वर्तमान समय में परिवहन की भूमिका चाहे वह सार्वजनिक हो या निजी, हमारे सामाजिक संपर्कों तथा कमर्शियल लेनदेन के लिए आवश्यक हो गई है।

परिवहन तकनीकी रूप से हर दूसरे दिन और अधिक उन्नत हो रहा है। मोटर वाहनों के उपयोग में एक बड़ा विस्तार हो रहा है क्यों की बदलते समय की मांग है समय की बचत और समय के बचत के लिए लोग उन्नत किस्म के परिवहन की सुविधा का लाभ उठा रहे हैं पर कहते है है हर सुविधा के दो पहलू होते है-तकनीक की उन्नति के साथ भी हमें सड़क दुर्घटनाओं की अप्रिय घटनाओं से निपटना होता है।

सड़क हादसों के कुछ महत्वपूर्ण कारण ओवरस्पीडिंग, शराब पीकर वाहन चलाना, यातायात नियमों का पालन न करने, गलत तरीके से ओवरटेक करने और लाल बत्ती जंप करने जैसे बहुत से कारण हैं।

 भारत में हर दूसरे दिन सड़क पर वाहनों की संख्या में बड़ी वृद्धि हो रही है । उदाहरण के लिए- दिल्ली के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार- 31 मार्च, 2015 को दिल्ली में सड़क पर मोटर वाहनों की कुल संख्या 88.27 लाख थी, जो पिछले वर्ष की तुलना में 6.4 प्रतिशत बढ़ी है हालांकि दिल्ली शहर में सड़क दुर्घटनाओं की संख्या में कमी आई इसका एक बड़ा कारण है डेल्ही मेट्रो रेल सेवा जो यात्रियों को एक विकल्प प्रदान करती है और इसके साथ साथ यातायात नियमों के सख्ती शामिल है।

 राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के ताजा आंकड़ों के अनुसार 2019 में पूरे भारत में कुल 4,37,396 सड़क दुर्घटनाएं दर्ज की गईं, जिसके परिणामस्वरूप 1,54,732 लोगों की मौत हुई और अन्य 4,39,262 घायल हो गए। अब अगर किसी को दुर्भाग्य से किसी एक्सीडेंट का सामना हो जाता है तब क्या कानून द्वारा घायल के लिए उपचार के लिए प्रावधान है ?

मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के तहत मुआवजे का अधिकार एक उपाय है।

माननीय सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा जारी निर्देशों के हिसाब से पुलिस द्वारा मोटर एक्सीडेंट क्लेम मामलों की जांच की प्रक्रिया का सारांश दिल्ली हाई कोर्ट ने मयूर अरोड़ा v अमित मामले में दिया है।

 मोटर यान अधिनयम, 1988 एक्ट के अध्याय 12 में दावा अधिकरण का प्रावधान है:- मोटर यान अधिनयम, 1988 के धारा 165 में दावा अधिकरण का प्रावधान है- (1) राज्य सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, एक या अधिक मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (जिन्हें इस अध्याय में इसके पश्चात् दावा अधिकरण कहा गया है) ऐसे क्षेत्र के लिए, जो अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किया जाए, उन दुर्घटनाओं की बाबत प्रतिकर के दावों के न्यायनिर्णयन के प्रयोजन के लिए गठित कर सकेगी जिनमें मोटर यानों के उपयोग से व्यक्तियों की मृत्यु या उन्हें शारीरिक क्षति हुई है या पर-व्यक्ति की किसी संपत्ति को नुकसान हुआ है या दोनों बातें हुई हैं ।

 शंकाओं के निराकरण के लिए यह घोषित किया जाता है कि उन दुर्घटनाओं की बाबत प्रतिकर के दावों के न्यायनिर्णयन के प्रयोजन के लिए गठित कर सकेगी जिनमें मोटर यानों के उपयोग से व्यक्तियों की मृत्यु या उन्हें शारीरिक क्षति हुई है” पद के अंतर्गत [धारा 140 और धारा 163क के अधीन] प्रतिकर के लिए दावे भी हैं। (2) दावा अधिकरण उतने सदस्यों से मिलकर बनेगा जितने राज्य सराकर नियुक्त करना ठीक समझे और जहां वह दो या अधिक सदस्यों से मिलकर बनता है वहां उनमें से एक को उसका अध्यक्ष नियुक्त किया जाएगा। (3) कोई व्यक्ति दावा अधिकरण के सदस्य के रूप में नियुक्ति के लिए तब तक अर्ह न होगा जब कि वह- (क) उच्च न्यायालय का न्यायाधीश न हो या न रहा हो, या (ख) जिला न्यायाधीश न हो या न रहा हो, या (ग) उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में [या किसी जिला न्यायाधीश के रूप मेंट नियुक्ति के लिए अर्ह न हो । (4) जहां किसी क्षेत्र के लिए दो या अधिक दावा अधिकरण गठित किए गए हैं वहां राज्य सरकार, साधारण या विशेष आदेश द्वारा, उनमें कामकाज के वितरण का विनियमन कर सकेगी ।

मोटर दुर्घटना क्लेम ट्रिब्यूनल [एमएसीटी] मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण मोटर वाहन अधिनियम, 1988 द्वारा बनाया गया है। इसका गठन मोटर वाहनों द्वारा दुर्घटना के शिकार लोगों को तेजी से अस्सिस्टेंट उपलब्ध कराने के लिए किया गया है। अधिकरण उन मामलों में सिविल न्यायालयों के क्षेत्राधिकार को विहीन कर लेते हैं जो मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण से संबंधित हैं । दावा अधिकरण की अपीलें उच्च न्यायालयों की हैं। यह अपील समय के अनुसार सीमित है और इसे दावा अधिकरण के पुरस्कार की तारीख से 90 दिनों के भीतर उच्च न्यायालय में दायर करना होगा। ‘ उच्च न्यायालय 90 दिनों की उक्त अवधि की समाप्ति के बाद अपील का मनोरंजन कर सकता है, यदि यह संतुष्ट है कि अपीलकर्ता को समय पर अपील को तरजीह देने से पर्याप्त कारण से रोका गया था (धारा-173)। हालांकि मोटर वाहन दुर्घटनाओं का दावा दाखिल करने की कोई समय सीमा नहीं है।

लेकिन एक असामान्य देरी पर ट्रिब्यूनल द्वारा स्पष्टीकरण की मांग किया जायेगा। मोटर वाहन अधिनियम,1988 की धारा 166 के अनुसार मुआवजे का दावा किया जा सकता है -जिस व्यक्ति को चोट आई है; – क्षतिग्रस्त संपत्ति के मालिक द्वारा; -दुर्घटना में मारे गए मृतक के सभी या किसी भी कानूनी प्रतिनिधि द्वारा; -घायल व्यक्ति के विधिवत अधिकृत एजेंट द्वारा या दुर्घटना में मारे गए मृतकों के सभी या किसी भी कानूनी प्रतिनिधि द्वारा। दावा याचिका निम्नलिखित द्वारा दायर की जा सकती है-दावा अधिकरण को उस क्षेत्र पर क्षेत्राधिकार होना जिसमें दुर्घटना हुई या, स्थानीय सीमाओं के भीतर दावा अधिकरण को, जिसके अधिकार क्षेत्र में दावेदार रहता है, या व्यवसाय पर किया जाता है या, जिसके अधिकार क्षेत्र की स्थानीय सीमाओं के भीतर प्रतिवादी रहता है।

मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण [एमएसीटी न्यायालय] मोटर दुर्घटनाओं के परिणामस्वरूप जीवन/संपत्ति के नुकसान और चोट के मामलों से संबंधित दावों से निपटते हैं । दावे सीधे संबंधित ट्रिब्यूनल में दायर किए जाते हैं। एमएसीटी अदालतों की अध्यक्षता दिल्ली उच्च न्यायिक सेवा के न्यायिक अधिकारियों द्वारा की जाती है। अब ये न्यायालय विभिन्न राज्यों के माननीय उच्च न्यायालयों की सीधी निगरानी में हैं। दिल्ली पुलिस ने जून 2009 में राजेश त्यागी v. जयबीर सिंह के मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्देशों पर मोटर वाहन अधिनियम की धारा 158 (6) को लागू करने के लिए विभिन्न कदम उठाए हैं।

निम्नलिखित दस्तावेजों का दावा याचिका के साथ होना चाहिए:-

1. दुर्घटना के संबंध में दर्ज प्राथमिकी की प्रतिलिपि, यदि कोई हो ।

2. एमएलसी/पोस्टमार्टम रिपोर्ट/मृत्यु रिपोर्ट की प्रति जैसा कि मामला हो सकता है।

3. मौत के मामले में दावेदारों और मृतकों की पहचान के दस्तावेज।

4. उपचार रिकॉर्ड के साथ उपचार पर किए गए खर्च के मूल बिल।

5. मृतक की शैक्षिक योग्यता के दस्तावेज, यदि कोई हो।

6. विकलांगता प्रमाण पत्र, यदि पहले से ही प्राप्त किया जाता है, तो चोट के मामले में।

7. मृतक/घायल की आय का प्रमाण।

8. पीड़ित की उम्र के बारे में दस्तावेज।

9. थर्ड पार्टी इंश्योरेंस पॉलिसी का कवर नोट, यदि कोई हो।

10. मृतकों के साथ दावेदारों के संबंधों का ब्यौरा देने वाला हलफनामा।

अक्टूबर 2017 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ द्वारा पारित एक ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने मोटर व्हीकल एक्ट, 1988 के तहत मुआवजे की गणना के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इस मामले में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम पुष्पा & ओआरएस के मामले में सुनवाई कर रही थी। कुछ कारक जिन पर पीठ ने प्रतिपादित किया और दिशा-निर्देश जारी किए उनमें से कुछ भविष्य की संभावनाओं को गुणा निर्धारित करने, व्यक्तिगत और रहन-सहन के खर्चों की ओर कटौती (जहां मृतक शादीशुदा था और जहां मृतक स्नातक था) का निर्धारण करने के लिए, और गुणक का चयन और पारंपरिक प्रमुखों पर उचित आंकड़ों पर भी विस्तृत था। मुकुंद देवांगन बनाम ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड मामले में मुख्य मुद्दा मोटर वाहन अधिनियम,1988 की धारा 163 ए के दायरे के इर्द-गिर्द घूमती रही। एमवी एक्ट की धारा 163ए में संरचित फार्मूले के आधार पर मुआवजे के भुगतान के लिए विशेष प्रावधान करने का प्रावधान है। मामले से प्रमुख बाते: संरचित फार्मूले के आधार पर एमवी एक्का की धारा 163 ए के तहत मुआवजा देना अंतिम मुआवजा की प्रकृति में है और वहां के अधीन न्यायनिर्णयन दुर्घटना में शामिल वाहन के चालक/मालिक की लापरवाही के किसी भी प्रमाण की आवश्यकता के बिना किया जाना आवश्यक है।

उस दावेदार को लापरवाही का प्रमाण स्थापित करने की आवश्यकता नहीं है, धारा 163A (2) द्वारा स्पष्ट किया गया है । यद्यपि उक्त धारा में दावेदार की लापरवाही के आधार पर बीमाकर्ता की संभावित रक्षा को विशेष रूप से बाहर नहीं किया गया है लेकिन बीमाकर्ता द्वारा ऐसी किसी भी स्थिति पर विचार करने के लिए ऐसी रक्षा शुरू करने की अनुमति देना है। रूपा रॉय बनाम न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड मोटर वाहन अधिनियम, 1988 धारा 166 के तहत दुर्घटना- विकलांगता- मुआवजा- वृद्धि- दुर्घटना के समय लगभग 10 वर्ष की आयु के नाबालिग- पीड़ित इन सब के लिए 6% ब्याज की दर से 2,00,000 रुपये से बढ़ाकर 10,00,000 रुपये प्रतिपूर्ति प्रदान करने के लिए कहा ।

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