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भारत-चीन सीमा पर तनातनी के बीच लद्दाख के लोग क्यों है नाराज ?

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भारत-चीन सीमा पर तनातनी के बीच लद्दाख के लोग क्यों है नाराज ?

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 नई दिल्ली: एक साल पहले अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने पर जो खुशी लद्दाख की जनता ने जाहिर की थी, वो अब फीकी दिखाई देने लगी और लोगों की नाराजगी सामने आने लगी। अपनी मांगों को लेकर वहां के सभी राजनीतिक दलों ने जिसमें बीजेपी शामिल है, अक्टूबर में होने वाले चुनाव के बहिष्कार को ऐलान कर दिया। केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के लोगों को अब डर लगने लगा है कि कहीं लद्दाख के बाहर से लोग यहां आकर उनके अधिकारों, उनकी नौकरी उनकी जमीन कहीं छीन न ले। लिहाजा लद्दाख के नेता इस मांग पर अड़ गए कि उनको संविधान में इस बात का  संरक्षण  दिया जाए।

अपनी इस मांग पर लद्दाख के तमाम नेता  पीपुल्स मूवमेंट फार कांस्टीच्युशनल सेफगार्ड के बैनर तले लामबंद हो गए। केंद्र सरकार के सामने ये मांग रख दी कि उनके अधिकारों की रक्षा के लिए उनको संवैधानिक ताकत दी जाए। मामले की नज़ाकत को समझते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लद्दाख के नेताओं को दिल्ली बुला कर उनसे मुलाकात की और उनकी हर बात को मानने का भरोसा दिया। भारत चीन सीमा पर चल रहे नाज़ुक दौर के बीच केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख से विरोध की आवाज को केंद्र सरकार ने समय पर भांप लिया। एक हाथ लो दूसरे हाथ दो के फॉर्मूले पर सहमति भी बन गई।

केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख की सीमा पर जहां चीन की सेना से लगातार टकराव की स्थिति बनी हुई है। वहीं लद्दाख के अंदर लोगों के भीतर पनप रहे अंसतोष की वजह से कहीं काम और न गड़बड़ हो जाए, लोगों के अंसतोष को फायदा विदेशी ताक़तें न उठा पाएं, केंद्र सरकार हरकत में आई और लद्दाख के लोगों को भरोसा दिलाया कि उनकी हर बात सुनी जाएगी। जिसको लेकर वहां के नेताओं ने अक्टूबर में होने वाले चुनाव का बहिष्कार किया था, लेकिन अब चुनाव बहिष्कार का फैसला टाल दिया गया है। लद्दाख के नेताओं की मांग है कि संविधान की छठी अनुसूची के मुताबिक मिलने वाले सभी अधिकार लद्दाख के लोगों  को मिले। जिसमें लद्दाख के लोगों के अधिकारों की सुरक्षा की गारंटी हो। पीपुल मूवमेंट के नाम से लद्दाख में आंदोलन कर रहे नेताओं की मांग है कि लद्दाखियों की भाषा, जनसंख्या, जमीन और नौकरी कोई फर्क न पड़े।

लद्दाख के पूर्व सासद चेरिंग दोरजे से जब ये सवाल पूछा गया कि कि लद्दाख में देश के दूसरे हिस्से से जाकर बसने वालों से उन लोगों को क्या दिक्कत है तो  दोरजे ने जवाव में कहा-  “लद्दाख में ज्यादातर लग ट्राइबल है, और और बाहर से लोग यहां आकर बस जाएंगे तो हम अपने ही राज्य में अल्पसंख्यक हो जाएंगे। विरोध करने वाले नेताओं का मानना है कि लद्दाख में ऐसे समय में ये विरोध और नाराजगी सामने आई है जब लद्दाख क्षेत्र में भारत और चीन सीमाएं आमने-सामने डटी हुई और रोज टकराव की स्थिति बनती है। ऐसे में लद्दाख की जनता में अगर कोई असंतोष रहता है तो इसका नुकसान भारत को हो सकता है।

लद्दाख के पूर्व राज्यसभा सांसद थुप्सान चिवांग ने कहा कि  “‘इस समय भारत चीन सीमा पर तनाव के बीच लद्दाख की जनता तन मन धन से भारत की सेना का साथ दे रही है, लेकिन अगर लद्दाख की जनता में किसी बात पर असंतोष रहता है तो इसका फायदा विदेशी ताकते उठा सकती हैं। दरअसल  लद्दाख के लोगों ने अक्टूबर में होने वाले लद्दाख हिल डेवलपमेंट काउंसिल के चुनाव के बहिष्कार का ऐलान कर दिया था। सरकार के सामने ये मांग रख दी कि जब तक उनको संविधानिक तौर पर अधिकार नहीं दिए जाएंगे वो अपनी मांग पर अड़े रहेंगे। मामले की गंभीरता क देखते हुए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने लद्दाख के नेताओं को दिल्ली बुलाकर मुलाकात की।

फैसला ये हुआ कि लद्दाखी नेता चुनाव बहिष्कार नहीं करेंगे और केंद्र सरकार चुनाव खत्म होने के 15 दिनों बात उनकी मांग को पूरा करने का काम शुरू कर देगी। केंद्र सरकार की ओर से इस बात का  आश्वासन  केंद्रीय खेल राज्य मंत्री किरेन रिजीजू ने दिया। हालांकि दोनों ओर से भरोसे के बाद आम सहमति भले ही बन गई हो लेकिन ये काम उतना आसान भी नहीं है। क्योंकि इसके लिए संविधान में बदलाव करने होंगे।

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