नमस्कार 🙏 हमारे न्यूज पोर्टल - मे आपका स्वागत हैं ,यहाँ आपको हमेशा ताजा खबरों से रूबरू कराया जाएगा , खबर और विज्ञापन के लिए संपर्क करे +91 97541 60816 ,हमारे यूट्यूब चैनल को सबस्क्राइब करें, साथ मे हमारे फेसबुक को लाइक जरूर करें , मेकाले की शिक्षा पर आधारित जीविका पद्धति से संयुक्त परिवार का विघटन – पुरी शंकराचार्य… – पर्दाफाश

पर्दाफाश

Latest Online Breaking News

मेकाले की शिक्षा पर आधारित जीविका पद्धति से संयुक्त परिवार का विघटन – पुरी शंकराचार्य…

😊 कृपया इस न्यूज को शेयर करें😊

मेकाले की शिक्षा पर आधारित जीविका पद्धति से संयुक्त परिवार का विघटन – पुरी शंकराचार्य

संजीव शर्मा की रिपोर्ट

रायपुर – ऋग्वेदीय पूर्वाम्नाय श्रीगोवर्द्धनमठ पुरीपीठाधीश्वर अनन्तश्री विभूषित श्रीमज्जगद्गुरु शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती जी महाराज मैकाले द्वारा प्रदत्त शिक्षा पद्धति के दुष्परिणामों की चर्चा करते हुये संकेत करते हैं कि तेजोबिन्दूपनिषत् आदि श्रुतियों के अनुशीलन से दृश्य सहित द्रष्टा प्रत्यगात्मा की चिद्रूपता सिद्ध है। महोपनिषत् आदि श्रुतियों के अनुशीलन से दृश्यसहित द्रष्टा प्रत्यगात्मा की चिद्रूपता सिद्ध है। मैं चिद्रूप ब्रह्मस्वरूप होता हुआ प्राणी हूँ , मैं प्राणी होता हुआ मनुष्य हूँ , मैं मनुष्य होता हुआ सनातनी आर्य हूँ , मैं सनातनी आर्य होता हुआ ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य आदि हूँ। इस प्रकार का समष्टि भावित व्यष्टि बोध अर्थात् सामान्य गर्भित विशेष परिबोध सर्वहित कारक तथा आत्मोद्धारक है। सामान्य के बोध से स्थिर अस्तित्व और मानवोचित शील की और विशेष के बोध से प्रशस्त उपयोगिता की सिद्धि सुनिश्चित है। उक्त तथ्य के अधिगम के अमोघ प्रभाव से सर्वात्म भाव का समुदय सुनिश्चित है। सनातन वैदिक – आर्य – हिन्दुओं का उदात्त सिद्धान्त प्राय: ग्रन्थों तक सीमित रह गया है। कूटज्ञ मेकाले की चलायी गयी शिक्षा और तदनुकूल जीविका पद्धति ने संयुक्त परिवार को प्रायः विखण्डित कर दिया है। संयुक्त परिवार के विखण्डित होने के कारण सनातन कुलधर्म , जातिधर्म , वर्णधर्म , आश्रम धर्म , कुलदेवी , कुलदेवता , कुल पुरोहित , कुलवधू , कुलवर , कुलपुरुष , कुलाचार , कुलोचित जीविका तथा कुलीनता का द्रुतगति से विलोप हो रहा है। सनातन संस्कृति में सबको नीति तथा अध्यात्म की शिक्षा सुलभ थी। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में साक्षरता को प्रश्रय और प्रोत्साहन प्राप्त होने पर भी परिश्रम के प्रति अनभिरुचि और न्यायपूर्वक जीविको पार्जन के प्रति अनास्था के कारण बेरोजगारी, आत्महत्या में प्रवृत्ति , आक्रोश और चतुर्दिक अराजकता पूर्ण वातावरण महामत्स्य न्याय को प्रोत्साहित कर रहा है। आर्थिक विपन्नता , कामक्रोध की किंकरता और लोभ की पराकाष्ठा ने मनुष्यों को पिशाच तुल्य उन्मत्त बनाना प्रारम्भ किया है। धन , मान , प्राण तथा परिजन में समासक्त तथा पार्टी और पन्थों में विभक्त हिन्दु अपने अस्तित्व और आदर्श को एवम् भारत के महत्त्व को सुव्यवस्थित रखने में सर्वथा असमर्थ है। सन्धि , विग्रह (युद्ध) , यान (आक्रमण) , आसन (आत्मरक्षा) , द्वैधीभाव (कपट) और समाश्रय (मित्रों से सहयोग लाभकर शत्रुजय) – संज्ञक छह राजगुण है। षड्यन्त्रकारियों द्वारा भारत के अस्तित्व और आदर्श के विघात में दुरभि सन्धि पूर्वक प्रयुक्त ये गुण सर्वदोषों के मूल हैं। यह देश छलबल समन्वित विधर्मियों के द्वारा साम , दाम , दण्ड , भेद , उपेक्षा , इन्द्रजाल और माया के विवश हतप्रभ , मूर्च्छित तथा मृतप्राय हो चुका है। मूर्च्छित शासक , पठित या अपठित मूर्ख मन्त्री और धूर्त पदाधिकारियों के द्वारा क्रियान्वित प्रकल्प राष्ट्र के लिये विघातक सिद्ध हो रहे हैं। सत्ता लोलुपता और अदूरदर्शिता के कारण दिशाहीन शासन तन्त्र तथा व्यापार तन्त्र के वशीभूत हिन्दुओं के द्वारा ही हिन्दुओं के अस्तित्व और आदर्श का अपहरण द्रुतगति से हो रहा है।

Whatsapp बटन दबा कर इस न्यूज को शेयर जरूर करें 

Advertising Space


स्वतंत्र और सच्ची पत्रकारिता के लिए ज़रूरी है कि वो कॉरपोरेट और राजनैतिक नियंत्रण से मुक्त हो। ऐसा तभी संभव है जब जनता आगे आए और सहयोग करे.

Donate Now

लाइव कैलेंडर

April 2023
M T W T F S S
 12
3456789
10111213141516
17181920212223
24252627282930