Farm Law: पीएम मोदी का विपक्ष पर हमला, बोले- जिनकी किसान पूजा करते हैं उन्हें ये लगा रहे हैं आग
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Farm Law: पीएम मोदी का विपक्ष पर हमला, बोले- जिनकी किसान पूजा करते हैं उन्हें ये लगा रहे हैं आग
नई दिल्ली: किसान कानून के हो रहे प्रदर्शन के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एकबार फिर विपक्ष पर देश की जनता को गुमराह करने का आरोप लगाया है। प्रधानमंत्री ने कहा कि जो अपने गुस्से को दिखाने के लिए कृषि उपकरण जला रहे है, वे ‘किसानों का अपमान कर रहे हैं।’ उन्होंने कहा कि विपक्ष किसानों द्वारा पूजे जाने वाले मशीनों और उपकरणों में आग लगाकर किसानों का अपमान कर रहा है। प्रधानमंत्री ने टिप्पणी भारतीय युवा कांग्रेस कार्यकर्ताओं के एक समूह द्वारा दिल्ली में ट्रैक्टर में आग लगाने के बाद आई। प्रधानमंत्री मोदी ने ये बातें उत्तराखंड में सीवेज ट्रीट के लिए ‘नमामि गंगे’ परियोजना के तहत छह परियोजनाओं का उद्घाटन करने के दौरान कही।
विपक्ष पर निशाना साधते हुए मोदी ने आरोप लगाया कि अब नए कृषि कानूनों का विरोध करने वालों ने सत्ता में होने के दौरान न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) लागू करने के पक्ष में बात की थी, लेकिन ऐसा कभी नहीं किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘यह हमारी एनडीए सरकार द्वारा एमएस स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार किया गया है।’ किसी का नाम लिए बिना विपक्ष पर हमला करते हुए उन्होंने कहा कि एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) के मुद्दे पर किसानों को गुमराह करने का आरोप लगाया और दोहराया कि एमएसपी तब भी रहेगा जब किसानों को अपनी उपज मनचाही जगह बेचने की आजादी होगी।
साथ ही पीएम मोदी ने कहा, ‘कुछ लोग इस स्वतंत्रता को (किसानों की) बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं। उनके लिए काला धन कमाने का एक और तरीका समाप्त हो गया है।’ मोदी ने फिर से कृषि क्षेत्र और श्रम सुधारों पर नए कानूनों के डर को दूर करने की कोशिश की। उन्होंने कहा, ‘संसद के मॉनसून सत्र के दौरान किसानों, मजदूरों और स्वास्थ्य से संबंधित कई सुधार लाए गए थे। ये सभी सुधार केवल मजदूरों, युवाओं, महिलाओं और किसानों को मजबूत करेंगे। देश इस बात का भी गवाह है कि कैसे कुछ लोग महज विरोध करने के लिए इनका विरोध कर रहे हैं।’
प्रधानमंत्री ने गंगा नदी की सफाई के लिए पर्याप्त कार्य नहीं करने के लिए भी पहले की सरकारों पर कटाक्ष किया। उन्होंने कहा, ‘पिछले दशकों में, नदी को साफ करने के लिए बड़ी पहल की गई थी। लेकिन उन पहलों में सार्वजनिक भागीदारी या दूरदर्शिता की कमी थी। परिणामस्वरूप, नदी कभी साफ नहीं हो पाई।’
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