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न तोर न मोर…मोर ही मोर….बिलासपुर तहसीलदार का अनोखा कारनामा….

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न तोर न मोर…मोर ही मोर….


बिलासपुर तहसीलदार रमेश मोर पर लगभग १२०० नामांतरण ऑनलाइन आइ डी से विलोपित करने का आरोप। मंगला पटवारी किशनलाल धीवर भी शामिल।
आज फिर शिकायतकर्ता ने मंत्री कमिश्नर कलेक्टर को लिखित में शिकायत पेश किया है की बिलासपुर तहसीलदार रमेश मोर ने मंगला पटवारी किशनलाल धीवर के साथ साँठगाँठ करके मंगला के सैकड़ों नामांतरण को पहले नामांतरण की आवश्यकता लिखकर ऑनलाइन आइ डी से विलोपित कर दिया। उसके बाद जो किसान परेशान होकर पटवारी कार्यालय और तहसील आफ़िस का चक्कर काट काट कर थक गए उन्होंने पटवारी से संपर्क कर अंत में चढ़ावा देकर अपना काम करवाया। ऐसा ही मंगला का एक प्रकरण बसंती गुप्ता वाला सामने आया है जिसमें पटवारी किशनलाल धीवर के निज सहायक हेमंत पाटनवार ने लेंन देन किया। पटवारी ने ख़ारिज हुए नामांतरण को फिर से अपने ही आइ डी से फिर से आवदेंन कर दिया और तहसीलदार रमेश मोर ने स्वंय ख़ारिज किए हुए केस को फिर से खुद पारित कर दिया। बड़ी गम्भीर त्रुटि और ज़बरदस्त गड़बड़ झाला। तहसीलदार रमेश मोर कलेक्टर के संरक्षण में जैसा चाहे वैसा मनमानी कर रहे हैं। जिसका मन आए उसका नामांतरण पास कर देते हैं जिसका मन आए उसका ख़ारिज कर देते हैं। और ज़्यादा मन आया तो सीधे ऑनलाइन आइ डी से डिलीट मार देते हैं। फिर मन आया तो खुद से इस डिलीट किए हुए केस को ऑनलाइन में नामांतरण पंजी को फिर से पूर्ववत कर अपने वसूली एजेंटो आपरेटर प्रेम धुरी या पटवारियों से वसूली करवाकर ख़ारिज किए हुए नामांतरण को फिर से पास कर देते हैं।
इधर मंगला पटवारी किशनलाल धीवर तो अपने बॉस से दो कदम आगे हैं। ख़ारिज किए हुए सब नामांतरण को फिर से ऑनलाइन में खुद आवेदक बनकर लगा देते हैं और तहसीलदार से पारित करवा लेते हैं। भ्रष्टाचार करने के नियत से पटवारी किशनलाल बीवन को डीएससी करते हैं और खसरा को छोड़ देते हैं। शिकायतकर्ता ने इसका नमूना भी पेश किया है मंगला का ३९०/२८.
लेकिन कहा गया है की अपराधी कितना भी शातिर हो निशान छोड़ ही जाता है। ऑनलाइन में सब बैकअप सुरक्षित होटें जा रहा है। जिस दिन शासन को रायपुर एनआइसी से बैकअप मिल गया उस दिन तहसीलदार रमेश मोर और पटवारी किशनलाल बड़ी मुसीबत में आ सकते हैं क्योंकि शिकायतकर्ता इस मामले को हाईकोर्ट ले जाने की तैयारी में हैं।
इधर हमारे वेब पोर्टल की ख़बर का बड़ा असर यह हुआ है की कल एनआइसी ने अपने भुइयाँ पोर्टल से नामांतरण की आवश्यकता वाला विकल्प ही हटा दिया है जिसका रमेश मोर जैसे तहसीलदार शासन को झूठी जानकारी पेश करने और किसानो से भ्रष्टाचार के लिए दुरुपयोग करते थे।
प्रदेश के मुखिया तक राजस्व विभाग के कार्यप्रणाली और भ्रष्टाचार से परेशान चुके हैं और सख़्त करवाही की चेतावनी दे चुके है लेकिन इन अधिकारियों को किसी का भय हो तब तो कोई बात हो।

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