बिलासपुर। Bilaspur News: कहते हैं अवसर न मिले तो प्रतिभाएं दबी रह जाती है, लेकिन अंबिकापुर के केंद्रीय कारागार के बंदी की चित्रकारी बंदिशों के बीच ऐसी निखरी कि आज जेल प्रबंधन स्वयं उसे आगे बढ़ाने में मदद कर रहा है। जेल में दाखिल होने से पहले दीवारों पर लेखन, थोड़ी-बहुत पेंटिंग करने वाले जशपुर जिले के रंजीत को केंद्रीय जेल के अधीक्षक ने ऐसा अवसर दिया कि रंग-ब्रश उसके जीवन का अभिन्न अंग बन गया है। केंद्रीय जेल के अधीक्षक राजेंद्र गायकवाड ने बंदी के मनोभावों का सम्मान करते हुए उसे पेंटिंग के संसाधन उपलब्ध कराए हैं। इसका परिणाम है कि लगभग पांच माह से केंद्रीय जेल की सलाखों के पीछे रहने वाले रंजीत की चित्रकारी ने सभी का मन मोह लिया है।

 

केंद्रीय जेल में दाखिल होने के बाद रंजीत को उसकी मंशा के अनुरूप साधारण पेंटिंग के लिए रंग-ब्रश जेल प्रबंधन ने उपलब्ध कराए थे। इसके बाद चंद माह में वह कुशल चित्रकार के रूप में सामने आया। जेल एंपोरियम में उसकी एक से बढ़कर एक पेंटिंग्स लगी हुई है, जो पहली नजर में ही लोगों को भाती है। इस बंदी ने जेल की दीवारों को अपनी पेंटिंग से नया रूप दिया है।

जेल में बीतने वाले पलों के बीच ये पेंटिंग्स उसके आय का स्त्रोत भी है। कई लोगों का आदमकद चित्र वह उतार चुका है। जेल अधीक्षक कहते हैं केंद्रीय जेल में आने वाले सजायाफ्ता कैदियों को लंबा समय जेल में गुजारना होता है। बंदी के रूप में सलाखों के पीछे आने के बाद सामान्य बंदी भी अलग कसक महसूस करता है। उसकी सोच में बदलाव लाने का हमारा प्रयास रहता है।

इसका परिणाम है कि गंभीर अपराधों की सजा भुगतने वाले अपनी रुचि के अनुरूप मिलने वाले कार्यों में इतने दक्ष हो चुके हैं कि इनके अपराधों की नहीं, काम की चर्चा जेल में आने वाले हर वर्ग के लोग करते हैं। इस काम के एवज में उन्हें जो पारिश्रमिक मिलती है, वह जेल से सजा अवधि पूरी होने के बाद रिहाई के समय इनके जीवन का आधार बनती है और ये जाने-अनजाने में होने वाले जीवन के आपराधिक पहलुओं को भूलकर नए जीवन की शुरुआत करते हैं। इससे उनमें समाज के बीच कुछ बेहतर करने की सोच बनती है।

 

 

कुंठा दूर करने हुई सार्थक पहल

 

बंदियों की रिहाई के बाद लोगों का नजरिया भले ही जो हो पर केंद्रीय जेल सजायाफ्ता कैदियों के जीवन में बदलाव लाने के लिए पूरी तरह से सुधार गृह के ध्येय को साकार कर रहा है। जेल मुख्यालय के निर्देशन में केंद्रीय जेल प्रबंधन ने यहां आने वाले बंदियों की कुंठा को दूर करने की पहल किया है। जेल को कैदी-बंदी यातना गृह न समझें, इसके लिए चल रहे प्रयासों का परिणाम है कि अंबिकापुर के सेंट्रल जेल में बंदी अपने हुनर का लोहा मनवा रहे हैं।

 

बंदियों में नैसर्गिक प्रतिभा कम नहीं

 

केंद्रीय कारागार अंबिकापुर में कैदियों को उनकी नैसर्गिक प्रतिभा को सामने लाने का अवसर दिया जा रहा है। रंजीत ने देवी-देवताओं सहित प्रकृति की खूबसूरती को अपनी चित्रकारी से आकर्षक ढंग से सामने लाने का प्रयास किया है। रंजीत ने हर धर्म के देवी-देवताओं के चित्रों को ही नहीं उकेरा बल्कि जेल अधीक्षक राजेंद्र गायकवाड़ को जन्मदिन पर उनकी बहन के द्वारा गिफ्ट में दिए गए गौतम बुद्ध की प्रतिमा को रंग भरकर आकर्षक रूप दिया है। केंद्रीय जेल अधीक्षक के कार्यालय में रखी यह प्रतिमा बरबस ही लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती है।

 

पत्थर पर उकेरा ब्रह्मांड को

 

मैनपाट भ्रमण के दौरान जेल अधीक्षक के द्वारा टाइगर प्वाइंट से लाए गए एक गोलाकार पत्थर को रंजीत ने अपनी पेंटिंग की बदौलत ब्रह्मांड का रूप दिया है। पेंटिंग को देखने के बाद यह वजनी पत्थर राह में पड़ा सामान्य पत्थर प्रतीत नहीं होता है। जेल अधीक्षक राजेंद्र गायकवाड़ का कहना है कि कई दिनों तक इस पत्थर को वे अपने बंगले में रखे थे। जब वे इसे जेल लेकर आए और बंदी से पत्थर की उपयोगिता के बारे में पूछा तो वह मौन रहा। जब उन्होंने कहा कि इस पत्थर में ब्रह्मांड का दर्शन हो पाएगा, तो उसके अंदर छिपा कलाकार उभरकर सामने आ गया और उसने पत्थर में पूरे ब्रह्मांड का दर्शन करा दिया।

 

 

जेल अधीक्षक ने कहा

 

केंद्रीय जेल के अधीक्षक राजेंद्र गायकवाड़ ने कहा कि दीवारों पर साधारण पेंटिंग करने वाला चित्रकारी में माहिर हो चुका है। बहन से जन्मदिन में तोहफा स्वरूप मिले गौतम बुद्ध की प्रतिमा की आकर्षक पेंटिंग को देखने के बाद उन्होंने रंजीत को अपनी कला को निखार लाने का पूरा अवसर दिया, इसका परिणाम है कि उसकी कलाकृति सभी को मोहित कर रही है।

मैनपाट से उन्होंने जिस पत्थर को उठाकर लाया था, उसमें संपूर्ण ब्रह्मांड का दर्शन भी इसी बंदी ने कराया है। ईश्वरीय शक्ति को महसूस करने वाला व्यक्ति हर विघ्न से बच जाता है। जब व्यक्ति सनातन सत्य को भूल जाता है तो उसमें नकारात्मक प्रवृत्ति आती है, अहंकार जीवन में चोट पहुंचाता है। मैनपाट भ्रमण के दौरान जब उन्होंने इस पत्थर को उठाया था तो इसमें आध्यात्म और जीवन का भाव मन में इस सोच के साथ सामने आया कि जीवन यात्रा में सुडौल रूप तुरंत नहीं मिलता।