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हैल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी के नियमों में होने जा रहे हैं ये बड़े बदलाव

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हैल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी के नियमों में होने जा रहे हैं ये बड़े बदलाव

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नई दिल्ली: भारत में तेजी से हैल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी (Health Insurance Policy) की डिमांड बढ़ रही है। अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग रहने के बाद भी यदि हॉस्पिटल पहुंचने पर भारी भरकम बिल भरना पड़े, तो परेशानियां और बढ़ जाती हैं। यदि आपने हैल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी ले रखी है या फिर लेने की सोच रहे हैं तो ये काम की खबर जरूर पढ़ लें, क्योंकि 1 अक्टूबर से हैल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी के नियमों में काफी कुछ बदलने जा रहा है। कहा जा रहा है कि ये बदलाव बीमाधारकों के लिए फायदे का सौदा साबित होंगे। अब कई नई बीमारियां भी इन हैल्थ पॉलिसीज में कवर होंगी। इंश्योरेंस रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी (IRDAI) द्वारा जारी गाइडलाइंस के मुताबिक ये बदलाव होंगे।

सबसे अहम बदलाव पॉलिसी के प्रीमियम को लेकर है। अब प्रीमियम का भुगतान हाफ ईयर, क्वाटर या महीने के हिसाब से किस्तों में किया जा सकेगा। उदाहरण के तौर पर 10 हजार रुपए का प्रीमियम देने के लिए छह—छह महीने में 5 हजार की दो किस्तें बनवा सकते हैं। या फिर एक महीने में 833.33 रुपए के हिसाब से किस्तें बनवा सकते हैं।

IRDAI के मुताबिक, आठ लगातार साल पूरे होने के बाद हैल्थ इंश्योरेंस क्लेम को नकारा नहीं जा सकता। सिर्फ फ्रॉड सिद्ध हो, उस स्थिति को छोड़कर या फिर कोई परमानेंट अपवाद पॉलिसी कॉन्ट्रैक्ट में बताया गया हो। हालांकि पॉलिसी को सभी लिमिट, सब लिमिट, को-पेमेंट, डिडक्टेबिलिटी के मुताबिक देखा जाएगा, जो पॉलिसी कॉन्टैक्ट के मुताबिक हैं।

दूसरा बदलाव 

दूसरा अहम बदलाव क्लेम को लेकर है। क्लेम के मामलों को देखते हुए यह बदलाव होगा। बीमा कंपनी को किसी क्लेम को आखिरी जरूरी दस्तावेज की रसीद की तारीख से 30 दिन में क्लेम का सेटलमेंट या रिजेक्शन करना होगा। क्लेम के भुगतान में देरी की स्थिति में बीमा कंपनी को पॉलिसी धारक को आखिरी जरूरी दस्तावेज की रसीद की तारीख से ब्याज देना होगा। खास बात यह है कि यह बैंक रेट से दो फीसदी ज्यादा होगा। हालांकि किसी के पास एक से ज्यादा पॉलिसी हैं, तो उस पॉलिसी के नियम और शर्तों के मुताबिक क्लेम सेटलमेंट करना होगा।

तीसरा बदलाव बीमारियों को लेकर है। रेगुलेटरी बॉडी की गाइडलाइंस में कई ऐसी बीमारियां कवर होंगी, जो पहले हैल्थ पॉलिसीज में शामिल नहीं थीं। या फिर कंपनी उनका क्लेम नहीं देती थीं। अब कई बाहर रखी गई बीमारियों पर एक रेगुलर हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी के तहत कवर देंगी। इनमें उम्र से संबंधित डिजनरेशन, मानसिक बीमारियां, इंटरनल congenital, जेनेटिक बीमारियों को अब कवर किया जाएगा। इसके अलावा उम्र से संबंधित बीमारियां शामिल हैं जिनमें मोतियाबिंद की सर्जरी और घुटने की कैप की रिप्लेसमेंट या त्वचा से संबंधित बीमारियां जो काम की जगह की स्थिति की वजह से हुई है, उस पर भी कवर मिलेगा।

IRDAI ने स्वास्थ्य और साधारण बीमा कंपनियों को टेलीमेडिसिन को भी दावा निपटान की नीति में शामिल करने का निर्देश दिया है। भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) ने 25 मार्च को ‘टेलीमेडिसिन’ को लेकर दिशानिर्देश जारी किया था ताकि पंजीकृत डॉक्टर टेलीमेडिसिन का इस्तेमाल कर स्वास्थ्य सेवाएं दे सके।

बीमा कंपनियों को अब कुछ मेडिकल खर्चों को शामिल करने की इजाजत नहीं होगी, जिसमें फार्मेसी और कंज्यूमेबल, इंप्लांट्स, मेडिकल डिवाइस और डाइग्नोस्टिक्स शामिल हैं। तो अब स्वास्थ्य बीमा कंपनियां प्रपोशनेट डिडक्शन के लिए कोई खर्च रिकवर नहीं कर सकती हैं। बीमा कंपनियों को निर्देश दिया है कि यह ICU चार्जेज के लिए लागू नहीं हो।

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