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सीएजी ने राफेल बनाने वाली कंपनी पर उठाए सवाल

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सीएजी ने राफेल बनाने वाली कंपनी पर उठाए सवाल

 

नई दिल्‍ली: रक्षा खरीद के लिए ऑफसेट नीति सरकार की भारी पड़ती दिखाई दे रही है। राष्ट्रीय लेखा परीक्षक ने डसॉल्ट एविएशन से खरीदे गए 36 राफेल फाइटर जेट्स के उदाहरण का हवाला देते हुए फ्रांसीसी निर्माता के प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर किए गए अपने वादे को पूरा नहीं करने की बात कही है।

सीएजी के ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक, कई विदेशी कंपनियां जिन्होंने रक्षा क्षेत्र का ठेका हासिल किया वह अपने ऑफसेट कमिटमेंट्स को पूरा करने में कोताही बरत रही हैं। राफेल बनाने वाली फ्रांस की कपनी डसॉल्‍ट एविएशन और एमबीडीए ने 36 राफेल विमान सप्लाई करने का कॉन्ट्रैक्ट हासिल किया। उन्हें कुल ऑफसेट ओबलीगेशन का 30 फीसदी डीआरडीओ को हल्के लड़ाकू विमान के लिए कावेरी इंजन को बनाने में हाईएन्ड टेक्नोलॉजी मुहैया कराकर पूरा करना था, लेकिन डसॉल्‍ट एविएशन और एमबीडी ने इस कमिटमेंट को पूरा करने को लेकर अभी तक अपनी रज़ामन्दी नहीं दी है।

सीएजी ने ऑफसेट्स पालिसी पर सवाल उठाते हुए कहा है कि इस पॉलिसी का ठोस नतीजा नहीं निकला है, सरकार को इसका समाधान निकालना चाहिए। बुधवार को जारी एक बयान में इसकी नवीनतम रिपोर्टों को संसद में पेश किए जाने के बाद नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) ने कहा, ‘यह पाया गया कि विदेशी विक्रेताओं ने टेंडर प्राप्त करने के लिए विभिन्न ऑफसेट प्रतिबद्धताएं की, लेकिन बाद में इन प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में उनकी कोई दिलचस्‍पी नहीं है।’

कैग ने कहा, ‘DRDO लाइट कंबाइन एयरक्राफ्ट के लिए इंजन (कावेरी) को स्वदेशी विकास के लिए तकनीकी सहायता प्राप्त करना चाहता था। लेकिन आज तक वेंडर ने इस तकनीक के हस्तांतरण की पुष्टि नहीं की है।’

22 अगस्त को एक रिपोर्ट के आधार पर कि CAG ने राफेल ऑफसेट सौदे की ऑडिट को दिया था। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्वीट किया था, “राफेल में भारतीय खजाने से पैसा चुराया गया था।”

सीएजी ने अपने बयान में कहा कि 2005 से मार्च 2018 तक, 46,427 करोड़ रुपये के विदेशी विक्रेताओं के साथ 46 ऑफसेट अनुबंध पर हस्ताक्षर किए गए थे। इन अनुबंधों के तहतदिसंबर 2018 तक, वेंडरों द्वारा 19,223 करोड़ रुपये के ऑफर्स का निर्वहन किया जाना चाहिए था। हालांकि, उनके द्वारा डिस्चार्ज किए जाने का दावा केवल 11,396 करोड़ रुपये था, जोकि प्रतिबद्धता का केवल 59 प्रतिशत था। इसके अलावा, विक्रेताओं द्वारा प्रस्तुत किए गए इन ऑफसेट दावों में से केवल 48 प्रतिशत (5,457 करोड़) मंत्रालय द्वारा स्वीकार किए गए।’

ऑफसेट नीति को भारत ने 2005 में आयात के माध्यम से की गई 300 करोड़ रुपये से अधिक की सभी पूंजी रक्षा खरीद के लिए अपनाया था। विदेशी विक्रेता या मूल उपकरण निर्माता (ओईएम) को भारत के रक्षा या एयरोस्पेस क्षेत्रों में खरीद के मूल्य का कम से कम 30 प्रतिशत भारत में निवेश करने की आवश्यकता थी।

कैग ने कहा, ”रक्षा मंत्रालय को नीति और उसके कार्यान्वयन की समीक्षा करने की जरूरत है।” इसके अलावा एक दशक से अधिक समय के बाद भी ऑफसेट नीति के उद्देश्यों को काफी हद तक अस्वीकार कर दिया गया है।

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