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जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ ने बुधवार को देश के 50वें मुख्य न्यायाधीश….41 साल पुराना पिता के फैसले को पलटा…. कही यह बात पढ़े पूरी खबर…

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पिता का 41 साल पहले दिया फैसला पलटते वक्त क्या सोच रहे थे जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, इंटरव्यू में बताई दिल की बात

 

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि जजों की कोई पीढ़ी यह दावा कर सकती है कि उसका फैसला अनंतकाल तक सही रहेगा, प्रासंगिक रहेगा, अपरिवर्तनीय रहेगा। हम अपनी सर्वश्रेष्ठ क्षमता के साथ हमारे समाज के लिए फैसला करते हैं।

हाइलाइट्स
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ बने 50वें सीजेआई, राष्ट्रपति मुर्मू ने दिलाई शपथ
जस्टिस चंद्रचूड़ ने 2017 में अपने ही पिता के एडीएम जबलपुर केस में फैसले को पलटा था

अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि उस समय वह क्या सोच रहे थे।

नई दिल्ली : जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ ने बुधवार को देश के 50वें मुख्य न्यायाधीश (Chief justice of India) के तौर पर शपथ ली। वह अयोध्या विवाद, राइट टु प्राइवेसी (पुत्तास्वामी केस) जैसे अहम मुद्दों पर ऐतिहासिक फैसला सुनाने वालीं बेंच का हिस्सा रहे हैं। सबसे बड़ी बात कि उन्होंने 2017 में अपने ही पिता और देश में सबसे लंबे वक्त तक सीजेआई रहे जस्टिस वाई. वी. चन्द्रचूड़ के 1976 में दिए एक बहुचर्चित फैसले को पलटा था। इमर्जेंसी के दौरान सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला बहुत ही कुख्यात रहा। एडीएम जबलपुर केस में सुप्रीम कोर्ट ने 4-1 के बहुमत से राइट टु लाइफ यानी जीवन के अधिकार को निरस्त करने का फैसला दिया। सुप्रीम कोर्ट को इस दाग को धोने में चार दशक लगे। 2017 में 9 जजों की जिस बेंच ने पुत्तास्वामी केस में उस फैसले को पलटा, उसका हिस्सा जस्टिस डी. वाई. चन्द्रचूड़ भी थे। बुधवार को उन्होंने सीजेआई का पद संभाला और उसी दिन अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस में उनका इंटरव्यू छपा। इंटरव्यू में जस्टिस चन्द्रचूड़ ने अपने पिता के फैसले को पलटने के बारे में भी बताया।

हर दौर का अपना सामाजिक और संवैधानिक संदर्भ होता है : जस्टिस चंद्रचूड़
जस्टिस चन्द्रचूड़ से पूछा गया कि एडीएम जबलपुर केस के फैसले को आप एक युवा और वकील के तौर पर किस तरह देखते थे। इस पर उन्होंने कहा कि हर पीढ़ी के जज अपने समय के सामाजिक और संवैधानिक संदर्भों में काम करते हैं। संविधान अपने आप में समय के साथ बदलता, विकसित होता दस्तावेज है। उन्होंने कहा, ‘मेरे पिता ने तमाम दूसरे मामलों में भी फैसले दिए जिन पर उस समय के संदर्भ में उनका यकीन था…हम तमाम फैसले सुना चुके हैं जो हमारे आज के परिवेश के अनुकूल हैं…50 साल में संविधान कुछ और निखरा होगा। नई अवधारणाएं आईं होंगी।’ जस्टिस चन्द्रचूड़ ने कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि जजों की कोई पीढ़ी यह दावा कर सकती है कि उसका फैसला अनंतकाल तक सही रहेगा, प्रासंगिक रहेगा, अपरिवर्तनीय रहेगा। हम अपनी सर्वश्रेष्ठ क्षमता के साथ हमारे समाज के लिए फैसला करते हैं। और जब मैंने अपने पिता के फैसले को पलटा तो वह संयोग से मेरे पिता का सुनाया फैसला था। लेकिन आखिरकार वह एक फैसला ही तो था।’

यह मेरा पाखंड होगा अगर मैं आपको यह नहीं बताता हूं। निश्चित तौर पर जब आप जानते हैं कि फैसले को किसने लिखा था तो इसमें बहुत हद तक पर्सनल एलिमेंट जुड़ा था। लेकिन पहले ही कह चुका हूं कि आप उसे इसलिए पलटते हैं कि वह एक फैसला है। यह आपके काम का हिस्सा है, आपकी संवैधानिक फर्ज का हिस्सा है…।
जस्टिस डी. वाई. चन्द्रचूड़

‘पिता का फैसला था लेकिन था तो एक फैसला ही…’
इंटरव्यू में उनसे ये सवाल भी पूछा गया कि क्या वह अपने पिता के फैसले को पलटने के लिए मौके का इंतजार कर रहे थे। इसके जवाब में जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘बिल्कुल नहीं…दरअसल जब मैं पुत्तास्वामी केस के फैसले में उस हिस्से को पूरा कर रहा था जिसमें मैंने कहा कि मैं एडीएम जबलपुर फैसले को पलट रहा हूं तो मुझे याद है कि मैंने अपने सेक्रटरी से कहा था कि हम रोजमर्रा के काम को बंद कर रहे हैं। मैं अंदर आया और कहा कि यह समय अब आत्ममंथन का है।’ उन्होंने माना कि अपने ही पिता के फैसले को पलटना उनके लिए भावुक क्षण था। उन्होंने कहा, ‘यह मेरा पाखंड होगा अगर मैं आपको यह नहीं बताता हूं। निश्चित तौर पर जब आप जानते हैं कि फैसले को किसने लिखा था तो इसमें बहुत हद तक पर्सनल एलिमेंट जुड़ा था। लेकिन पहले ही कह चुका हूं कि आप उसे इसलिए पलटते हैं कि वह एक फैसला है। यह आपके काम का हिस्सा है, आपकी संवैधानिक फर्ज का हिस्सा है…लेकिन एक जज के तौर पर हम अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने में भी प्रशिक्षित होते हैं। यह साल दर साल ट्रेनिंग से आता है। इसलिए आपको वह करना होता है जो सही होता है, बिना यह देखे कि आपके सामने कौन है, कौन प्रभावित हो रहा है या किसका जजमेंट है।’

जब मैं पुत्तास्वामी केस के फैसले में उस हिस्से को पूरा कर रहा था जिसमें मैंने कहा कि मैं एडीएम जबलपुर फैसले को पलट रहा हूं तो मुझे याद है कि मैंने अपने सेक्रटरी से कहा था कि हम रोजमर्रा के काम को बंद कर रहे हैं। मैं अंदर आया और कहा कि यह समय अब आत्ममंथन का है।
एडीएम जबलपुर केस में अपने पिता का फैसला पलटने पर जस्टिस डी. वाई. चन्द्रचूड़

क्या था एडीएम जबलपुर बनाम शिवाकांत शुक्ला केस
1976 में आपातकाल के दौरान सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला इस संस्था के 67 साल के गौरवशाली इतिहास पर एक धब्बा सा रहा है। यह फैसला था, तत्कालीन केंद्र सरकार द्वारा जीवन के अधिकार को निरस्त करने के फैसले को बरकरार रखना। देश में आपातकाल लगा हुआ था। नागरिकों के मौलिक अधिकार सस्पेंड कर दिए गए थे। बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां हो रही थीं। लोग गैरकानूनी ढंग से हिरासत में लिए जा रहे थे। तब गिरफ्तार किए गए कुछ लोगों ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाएं लगाईं। जबलपुर हाई कोर्ट में भी शिवाकांत शुक्ला नाम के एक वकील ने मूल अधिकारों को निलंबित करने के खिलाफ याचिका लगाई। जबलपुर हाई कोर्ट समेत देश के 9 हाई कोर्ट ने अपने फैसलों में साफ कहा कि इमर्जेंसी के बाद भी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं को दायर करने का नागरिकों का अधिकार कायम रहेगा। इसके खिलाफ केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची। यह केस एडीएम जबलपुर बनाम शिवाकांत शुक्ला केस के रूप में चर्चित हुआ। 1976 में सुप्रीम कोर्ट ने 4-1 के बहुमत के फैसले से जीवन के अधिकार को निलंबित करने को जायज ठहराया। इस बहुमत वाले फैसले को जस्टिस एमएच बेग ने लिखा था। तत्कालीन चीफ जस्टिस एएन रॉय, जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएन भगवती इस फैसले से सहमत थे। जस्टिस एचआर खन्ना इस फैसले से पूरी तरह असहमत थे, जिनका मानना था कि जीवन का अधिकार छीना नहीं जा सकता।

जब 41 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने सुधारी ऐतिहासिक भूल

2017 में सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बेंच ने पुत्तास्वामी केस में इमर्जेंसी के दौर की उस ऐतिहासिक गलती को सुधारा। कोर्ट ने कहा कि जीने का अधिकार, निजता का अधिकार और स्वतंत्रता के अधिकार को अलग-अलग करके नहीं देखा जाना चाहिए। जस्टिस जेएस खेहर, जस्टिस जे चेलमेश्वर, जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस आरके अग्रवाल, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस एएम सप्रे, जस्टिस डीवी चंद्रचूड़, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस ए. अब्दुल नजीर की 9 जजों की पीठ ने 1976 के उस फैसले को गलत बताया। पीठ ने कहा कि भारतीय नागरिकों ने संविधान को अपनाया इसका कतई मतलब नहीं है कि उन्होंने अपने व्यक्गित जीवन और अपने निजी स्वतंत्रता को सरकार के हाथों सौंप दिया। इसलिए आपातकाल लगाकर निजी स्वतंत्रता का हनन करना गैर-संवैधानिक है। पीठ ने कहा कि चार जजों का बहुमत वाला फैसला खामियों भरा था, जबकि जस्टिस खन्ना बिलकुल सही थे। एडीएम जबलपुर जजमेंट के मामले पर बोलते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘जब देशों का इतिहास लिखा जाता है और उसकी समीक्षा होती है तो न्यायिक फैसले ही स्वाधीनता के ध्वजवाहक होते हैं।’ उन्होंने कहा कि चार जजों के उस फैसले में कमियां थीं। जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को छीना नहीं जा सकता है।

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