Raigarh News : रायगढ़ जिले के धान संग्रहण केंद्रों में करोड़ो का फर्जीवाड़ा….. जांच एवं कार्यवाही के नाम पर लीपापोती जारी……भ्रष्टाचार करने वालों को आखिर क्यों मेहरबानी…. ❓❓❓
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रायगढ़ जिले के धान संग्रहण केंद्रों में करोड़ो का फर्जीवाड़ा….. जांच एवं कार्यवाही के नाम पर लीपापोती जारी……भ्रष्टाचार करने वालों को आखिर क्यों मेहरबानी…. ❓❓❓
लोहरसिंह संग्रहण केंद्र में 12 करोड़ का नुकसान, जांच अधूरी समितियों से संग्रहण केंद्र में हुआ था भंडारण, पंजीयक सहकारी संस्थाएं ने दर्ज किया था प्रकरण
रायगढ़। धान खरीदी में घपला रोकने में राज्य सरकार नाकाम रही है। केवल समितियों में ही जवाबदेही तय की जाती है और वसूली भी होती है। विपणन विभाग के संग्रहण केंद्रों में हर साल करोड़ों का धान सूख जाता है। केवल लोहरसिंग केंद्र में ही 12 करोड़ व हरदी में दो करोड़ का नुकसान होचुका है जिस पर प्रकरण भी दर्ज हो चुका है, लेकिन अब तक कार्रवाई जीरो है।। जिले में हमेशा ही धान में कमी का सारा ठीकरा समितियों पर फोड़ा जाता है। लेकिन उससे भी ज्यादा कमी, कम अवधि में संग्रहण केंद्रों में होती है। सरकार मार्कफेड के अधिकारयों व कर्मचारियों को घपला करने की खुली छूट देती है। इसी का नतीजा है कि वर्ष 2012-13, 13-14 और 14-15 में रायगढ़ में 12 करोड़ का नुकसान हुआ था। यह नुकसान केवल दो संग्रहण केंद्रों में धान की कमी व बारदाना क्षति के कारण हुआ है। यह सिलसिला अब भी जारी है। चारों संग्रहण केंद्रों में 2-3 प्रश तक सूखत आती है, जिसकी भरपाई नहीं की जाती। पुराने मामलों में कार्रवाई नहीं होने से अब भी संग्रहण केंद्रों में बड़े स्तर में गड़बड़ी जारी है। पंजीयक सहकारिता ने भूतपूर्व डीएमओ, लोहरसिंग और हरदी केंद्र प्रभारी के विरुद्ध प्रकरण भी दर्ज किया है। इसकी सुनवाई पांच साल से चल रही है। इस अनियमितता पर कार्रवाई नहीं होने के कारण अब भी यही सिलसिला जारी है। उप पंजीयक ने जांच भी की थी जिसमें पता चला कि लोहरसिंग केंद्र में उन तीन सालों में करीब 12 करोड़ का नुकसान हुआ। वहीं हरदी में 2.56 करोड़ रुपए की हानि हुई। पंजीयक सहकारी संस्थाएं छग सहकारी सोसायटी अधिनियम 1960 की धारा 56(बी) के तहत प्रारंभिक प्रकरण दर्ज किया था।
अब भी वही सिलसिला
समितियों में धान की कमी होने पर रिकवरी की जाती है। जबकि संग्रहण केंद्रों में इससे छूट दी जाती है। कई महीनों तक संग्रहण केंद्रों में धान का भंडारण होता है। इसके बाद उठाव पूरा होता है तो भी कमी हो जाती है। मार्कफेड और खाद्य विभाग की देरी के कारण उठाव होता है। इसलिए नुकसान की भरपाई नहीं की जाती। जिस धान का भुगतान किसानों को होता है, परिवहन का भी लाखों रुपए दिया जाता है, उसकी कमी पर कोई आवाज नहीं उठती।
लोहरसिंग का गड़बड़झाला
वर्ष धान कमी कीमत बारदाना कमी कीमत कुल नुकसान
12-13 16028 क्विं. 2.13 करोड़ 40063 16.82 लाख 2.30 करोड़
13-14 44316 क्विं. 5.82 करोड़ 110791 48.74 लाख 6.31 करोड़
14-15 20345 क्विं. 2.77 करोड़ 50863 22.37 लाख 2.99 करोड़
कुल 80689 क्विं. 10.72 करोड़ 201717 87.93 लाख 11.61 करोड़
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