क्या है आईपीसी (IPC) जाने कानून के बारे में….
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IPC: जानिए, क्या होती है भारतीय दंड संहिता, कब आई थी वजूद में
भारतीय दण्ड संहिता ब्रिटिश काल में सन् 1862 में 1 जनवरी को लागू हुई थी. इसके बाद समय-समय पर इसमें संशोधन होते रहे. विशेषकर भारत के स्वतन्त्र होने के बाद इसमें बड़ा बदलाव किया गया.
IPC में अलग अलग अपराधों को 511 धाराओं के तहत परिभाषित किया गया है
📕जरूरी बातें-✒️
देश में लागू है भारतीय दंड संहिताभारतीय दंड संहिता में हैं 23 चैप्टर भारतीय दंड संहिता में हैं 511 धाराएं
हमारे देश में अक्सर पुलिस भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी की धाराओं में आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई करती है. उन्हीं धाराओं के तहत अदालत में आरोपियों के खिलाफ मुकदमें चलते हैं. इनमें कई तरह के संगीन जुर्म भी आते हैं. आइए आपको बताते हैं कि आखिर ये आईपीसी है क्या?
क्या भारतीय दंड संहिता
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) यानी IPC भारत में यहां के रहने वाले किसी भी नागरिक द्वारा किये गये कुछ अपराधों की परिभाषा और दंड का प्रावधान करती है. आईपीसी (IPC) में 23 चैप्टर हैं. जिनमें कुल 511 धाराएं हैं. सबसे अहम बात ये है कि आईपीसी भारत की सेना पर लागू नहीं होती है. पहले जम्मू एवं कश्मीर में भी आईपीसी के स्थान पर रणबीर दंड संहिता (RPC) लागू होती थी.
अंग्रेजों ने बनाई थी भारतीय दंड संहिता
भारतीय दंड संहिता ब्रिटिश काल में सन् 1862 में 1 जनवरी को लागू हुई थी. इसके बाद समय-समय पर इसमें संशोधन होते रहे. विशेषकर भारत के स्वतन्त्र होने के बाद इसमें बड़ा बदलाव किया गया. पाकिस्तान और बांग्लादेश ने भी भारतीय दंड संहिता को ही अपनाया. लगभग इसी रूप में यह विधान तत्कालीन ब्रिटिश सत्ता के अधीन आने वाले बर्मा, श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर, ब्रुनेई आदि में भी लागू कर दिया गया था.
📕1 जनवरी 1862 में लागू हुई थी आईपीसी-✒️
ब्रिटिश कालीन भारत के पहले कानून आयोग की सिफारिश पर आईपीसी 1860 में अस्तित्व में आई. और इसके बाद इसे भारतीय दंड संहिता के तौर पर 1862 में लागू किया गया था. मौजूदा दंड संहिता को हम सभी भारतीय दंड संहिता 1860 के नाम से जानते हैं. इसका खाका लॉर्ड मेकाले ने तैयार किया था. बाद में समय-समय पर इसमें कई तरह के बदलाव किए जाते रहे.
भारतीय दंड संहिता 1860 के तहत सिविल कानून (Civil law) और दाण्डिक कानून (Criminal Law) आते हैं. आईपीसी अपराध की परिभाषा करती है और दंड के प्रावधान की जानकारी भी देती है. इसका मकसद पूरे भारत में एक तरह का पीनल कोड लागू करना है ताकि अलग-अलग क्षेत्रीय व स्थानीय कानूनों की जगह पूरे देश में एक ही कानून हो.
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