*धरमपुर पंडो समुदाय के मृत युवती के पिता को विगत दो माह से अंतिम जांच प्रतिवेदन के लिए काटने पड़ रहे हैं धरमजयगढ़ थाने के चक्कर!* *@क्या यही है परित्राणाय साधुनाम का चरितार्थ?*
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*धरमपुर पंडो समुदाय के मृत युवती के पिता को विगत दो माह से अंतिम जांच प्रतिवेदन के लिए काटने पड़ रहे हैं धरमजयगढ़ थाने के चक्कर!*
*@क्या यही है परित्राणाय साधुनाम का चरितार्थ?*
*असलम आलम खान धरमजयगढ़ न्यूज* :- क्षेत्र के धरमपुर गांव निवासी विशेष पिछड़ी जनजाति पंडो समुदाय का परिवार अंतिम प्रतिवेदन मृत्यु प्रमाण पत्र के लिए दो माह से धरमजयगढ़ थाने का चक्कर लगा रहे हैं लेकिन हर बार उन्हें निराशा ही हाथ लग रही है जरूरी दस्तावेज नही मिल पा रहा।
याद दिला दें कि करीब दो माह पूर्व धरमजयगढ़ क्षेत्र के धरमपुर गांव में विशेष पिछड़ी जनजाति पंडो समुदाय की एक युवती विमला पंडो पिता गुरबारु पंडो की देर रात घर मे सोने के दौरान विषैला सर्प के डसने से धरमजयगढ़ हॉस्पिटल में इलाज के दौरानअकाल मौत हो गई थी।
जिसका धरमजयगढ़ थाने में अस्पताल तहरीर पर मर्ग कायम कर आगे की कार्यवाई की गई थी अब जबकी दो माह गुजर जाने के बाद भी उन्हें थाने से जरूरी दस्तावेज उपलब्ध नही हो पा रहा है, जो बड़ी विडंबना की बात है शासन से मिलने वाली प्राकृतिक आपदा के तहत सहायता राशि या फिर मुआवजा राशि के लिए बकौल मृतिका विमला के पिता अंतिम जांच प्रतिवेदन के लिए कइयों बार धरमजयगढ़ थाने के चक्कर काट चुके हैं।क्या पोलिस विभाग इसी तरह परित्राणाय साधूनाम को चरितार्थ कर रही है,कार्यशैली में सुधार की नितांत आवश्यकता है।
बहरहाल पिता गुरबारु पंडो की माने तो घटना के दो माह गुजर जाने के बाद भी थाने से जरूरी दस्तावेज समय पर नही मिल रहा है परिणाम स्वरूप कहीं न कहीं शासन से मिलने वाली मुआवजा राशि को प्राप्त कर पाने में, परिजनों को काफी देरी का सामना करना पड़ रहा है। जिसे लेकर वे खासा परेशान हैं।उनका कहना है गुरबारु को थाने से हर बार यह कहकर बैरंग लौटा दिया जा रहा है ,कि अभी काम नही हुआ है, कल आएं परसों आए इसी चक्कर में मृतिका के परिजन दो माह से थाने का लगातार चक्कर काट रहे हैं। ऐसे में यहां कहा जा सकता है एक तरफ शासन प्रशासन विशेष पिछड़ी जनजातियों को आगे लाने उनके उत्थान जीवन मे सुधार लाने हर सम्भव प्रयास करने का दावा कर रही है।हाल ही में कलेक्टर के दिशा निर्देश पर स्थानीय एसडीएम के नेतृत्व में विशेष पिछड़ी जनजाति लोगों के उत्थान हेतु,उन्हें शासन की योजना का लाभ दिलाने शिविर का आयोजन किया गया,इन मायनो में तो पिछड़ी जनजाति को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने वाली बात बेमानी ही साबित हो रही है।शासन की यह महत्वाकांक्षी योजना कहीं न कहीं धरातल पर पूरी तरह फेल होती नजर आ रही है।
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