दुर्गा महानवमी पूजा 14 अक्टूबर, 2021 (गुरूवार)…
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दुर्गा महानवमी पूजा
14 अक्टूबर, 2021 (गुरूवार)
इस वर्ष महा नवमी 14 अक्टूबर, गुरुवार को मनाई जाएगी। महा नवमी के दिन दुर्गा मां के नौहवे रूप मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। नवरात्रि के व्रत को महा नवमी के दिन पारण किया जाता है।
इस दिन प्रातः काल पूजा कर कन्या पूजन किया जाता है। इसके बाद भक्त स्वयं भोजन कर अपना व्रत खोलते हैं।
महानवमी महत्व
मान्यता है कि जो व्यक्ति इस दिन सच्चे मन से मां सिद्धिदात्री की पूजा करता है, उसे वह सिद्धियां प्राप्त कराती हैं और उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। मां की कृपा होने पर व्यक्ति हर स्थिति और दिशा पर विजय प्राप्त कर सकता है।
पूजा विधि
महा नवमी के दिन सिद्धिदात्री मां की विधि विधान से पूजा की जाती है किंतु किसी कारणवश अगर ऐसा संभव ना हो तो उनको प्रसन्न करने का यह एक आसान तरीका है:मां सिद्धिदात्री की पूजा के लिए नवान्न का प्रसाद, नवरस से युक्त भोजन और नौ प्रकार के फल और फूल आदि चढ़ाए जा सकते हैं।
मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेणसंस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
कन्या पूजन की विधि
कन्या पूजन के लिए नौ कन्याएं और एक लंगूर को बिठा लीजिए। नौ कन्याएं मां दुर्गा के नौ रूपों का प्रतिनिधित्व करती हैं और एक लंगूर भैरव का प्रतिनिधित्व करता है।
कन्याओं और लंगूर के पैर धोकर आसन पर बिठाएं, और उन्हें तिलक लगाकर आरती करें।मंदिर में मां को भोग लगाने के बाद कन्याओं और लंगूर को भोजन कराएं। भोजन के बाद उन्हें फल और दक्षिणा दें। अंत में कन्याओं और भैरव के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लें और सम्मानपूर्वक विदा करें।
कन्या पूजन के लिए नौ कन्याओं का होना आवश्यक नहीं है, आप चाहे तो कुछ कन्याओं में ही यह पूजन कर सकते हैं और 9 में से जितनी कन्याएं बची हों उनका भोजन गौ माता को खिला सकते हैं।
कन्या पूजा – पौराणिक कथा
जम्मू-कश्मीर के हंसाली गांव में मां के भक्त पंडित श्रीधर थे। वह निःसंतान होने के कारण दुखी रहते थे। एक दिन उन्होंने अविवाहित कन्याओं को अपने घर नवरात्रि पूजा के लिए आमंत्रित किया। माता वैष्णो बालिका रूप में उनके बीच आकर साथ बैठ गईं।
पूजा के बाद सभी लड़कियां लौट गईं लेकिन मां वहीं रूकी रहीं। बालिका रूप में आई मां दुर्गा ने पंडित श्रीधर से भंडारे का आयोजन करने को कहा। श्रीधर ने उनकी बात मानी और भंडारा का निमंत्रण बांट दिया। भंडारे में कई लोगों के साथ साथ कई कन्याएं भी आईं। इसके बाद श्रीधर के घर एक बच्चे का जन्म हुआ।
तभी से लोग कन्या पूजन और कन्या भोजन कराकर मां से आशीर्वाद मांगते हैं। इस प्रकार माता वैष्णो देवी ने अपने परम भक्त श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया और पूरी सृष्टि को अपने अस्तित्व का प्रमाण भी दिया।
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