जस्टिस नरीमन ने कहा: ‘खत्म हो देशद्रोह कानून’, सरकारें आएंगी-जाएंगी, नागरिकों का खुलकर सांस लेना जरूरी..
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जस्टिस नरीमन ने कहा: ‘खत्म हो देशद्रोह कानून’, सरकारें आएंगी-जाएंगी, नागरिकों का खुलकर सांस लेना जरूरी
नई दिल्ली रिटायर्ड जस्टिस नरीमन ने कहा- महत्वपूर्ण यह है कि सुप्रीम कोर्ट अपनी शक्ति का इस्तेमाल करे और धारा 124 ए और यूएपीए कानून के कुछ हिस्सों को खत्म कर दे। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में अभी भी धारा 124ए कैसे बची हुई है, इस पर विचार किया जाना चाहिए।
जस्टिस आरएफ नरीमन
जस्टिस आरएफ नरीमन – फोटो : सोशल मीडिया
सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन ने कहा है कि नागरिकों का खुलकर सांस लेना जरूरी है। सरकारें तो आएंगी और जाएंगी। इसके लिए जरूरी है कि देशद्रोह कानून रद्द कर दिया जाए और गैरकानूनी गतिविधियों को लेकर बने यूएपीए कानून के भी कुछ हिस्सों को खत्म कर दिया जाए।
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विश्वनाथ परायत समिति द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान जस्टिस नरीमन ने कहा कि मैं सुप्रीम कोर्ट से आग्रह करूंगा कि वह लंबित देशद्रोह कानून के मामलों को वापस केंद्र के पास न भेजे।
अपनी शक्ति का इस्तेमाल करे सुप्रीम कोर्ट
रिटायर्ड जस्टिस ने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण यह है कि सुप्रीम कोर्ट अपनी शक्ति का इस्तेमाल करे और धारा 124 ए और यूएपीए कानून के कुछ हिस्सों को खत्म कर दे, जिससे यहां के नागरिक खुलकर सांस ले सकें। उन्होंने कहा कि वैश्विक कानून सूचकांक में भारत की रैंक 142 है, इसकी वजह यह है कि यहां कठोर और औपनिवेशिक कानून अभी भी मौजूद है।
अंग्रेजों का कानून है यूएपीए
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त हुए जस्टिस नरीमन ने कहा कि भारत के चीन और पाकिस्तान से युद्ध हुए थे। इसके बाद औपनिवेशिक कानून व गैरकानूनी गतिविधि निषेध अधिनियम बनाया गया था। यूएपीए अंग्रेजों का कानून है, क्योंकि इसमें कोई अग्रिम जमानत नहीं होती है। इसमें कम से कम पांच साल की कैद है। उन्होंने कहा कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में अभी भी धारा 124ए कैसे बची हुई है, इस पर विचार किया जाना चाहिए।
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